धूम मची है झूम
उठी है,
धरती गगन सितारे
भी .
धर्म का रथ सज-धज
कर निकला ,
अपने नन्द दुलारे
की .
बलदाऊ के संग में
बैठी,
बहन सुभद्रा
प्यारी भी,
हर्षित जन है
पुलकित मन है,
बीती रात
अंधियारी की .
मंद-मंद होठों पर
हंसी है,
जैसे खिलती
कुसुम-कली की .
एक झलक पा लेने
भर की,
नयन झांकती गली-गली
की .
स्वागत करने को
है आतुर,
प्रकृति कृष्ण
मुरारी की .
भक्तों के दुःख
हरनेवाले,
गोवर्धन गिरधारी
की .
नभ से सुमन बरसता
जैसे,
वैसी बरस रही है
फुहार .
धरती का मुख चूम-चूम
कर,
बह रही शीतल ये
बयार .
श्रद्धा-भरी ऐसा
ये क्षण है,
पुलक-भरी भक्ति
सबकी .
आस्था में इतनी
शक्ति है,
प्यास बुझी है
दृष्टि की .
देश की पावन माटी
अपनी,
जिसकी संस्कृति
है अपार .
जन-जन में उत्साह
जगाने,
रथ निकला है अबकी बार .
बहुत सुंदर वर्णन रथ यात्रा का ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर रचना💐 भगवान जगन्नाथ स्वामी जी की जय 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 27 जून 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
Deleteरथयात्रा का बहुत ही सुन्दर मनमोहक सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
Deleteभक्ति रस में डूबी सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी
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