Friday, 15 May 2015

नन्हा बीज संकल्पित होकर



नन्हा बीज संकल्पित होकर
आता है जब वो धरती पर
करने को सपने साकार
देने को सुदृढ़ आकार
सृष्टि को सुन्दर बनाने
सांसों में सुवास को भरने
जन-जन का मन पुलकित करने
अरमानों को सज्जित करने
वायुदेव का प्रचंड आवेग
सहता अनेक उन्माद का वेग
विनम्र हो झुकता रहा  
तृष्णाओं को पीता रहा  
बाधाओं से लड़ता रहा  
संकल्प ले बढ़ता रहा
त्याग-तप का लेकर सीख
बन गया विशाल सा वृक्ष
झुलसे तन को छाया देकर
पर-तृप्ति प्राणों में भरकर
राहगीरों के राह का डेरा
बन गया पंछियों का बसेरा
औरों की सेवा करने का
प्रण लिया मरने-मिटने का
सार्थक बनाया अपना जीवन
परोपकार ही उसका दर्पण .   

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