नन्हा बीज
संकल्पित होकर
आता है जब वो
धरती पर
करने को सपने
साकार
देने को सुदृढ़
आकार
सृष्टि को सुन्दर
बनाने
सांसों में सुवास
को भरने
जन-जन का मन
पुलकित करने
अरमानों को
सज्जित करने
वायुदेव का
प्रचंड आवेग
सहता अनेक उन्माद
का वेग
विनम्र हो झुकता
रहा
तृष्णाओं को पीता
रहा
बाधाओं से लड़ता
रहा
संकल्प ले बढ़ता
रहा
त्याग-तप का लेकर
सीख
बन गया विशाल सा
वृक्ष
झुलसे तन को छाया
देकर
पर-तृप्ति
प्राणों में भरकर
राहगीरों के राह
का डेरा
बन गया पंछियों
का बसेरा
औरों की सेवा
करने का
प्रण लिया मरने-मिटने
का
सार्थक बनाया
अपना जीवन
परोपकार ही उसका
दर्पण .
No comments:
Post a Comment