Thursday, 16 October 2014

जागो युग सेनानी



युग का मुर्गा बांग दे रहा
जागो युग सेनानी .
नये वेश में करनी है
भारत की अगवानी .
दमकेगा अब गाँव-गाँव में
स्वच्छता भरी जवानी .
मिल-जुल कर हर कार्य करे
करे ना अब  मनमानी .
सृजन की लहरे मारे हिलोरे
नव निर्माण है आनी.
लोक शिक्षक बनकर उभरे
नव यौवन मस्तानी .
कार्य अधूरे जो बाकी है
पूरे मन से करेंगे .
आत्म निर्भर हम बनेंगे
श्रम स्वीकार करेंगे .
गरीब बनकर जीना सीखे
कंगाली ना घेरे .
योग्यता बढती ही जाये
काबिल बनकर उभरे .
सपने हो या बने हकीकत
नव चितन तो आये .
हम सबका कर्तव्य यही है
हाथ से हाथ मिलाये .
इसी सोच पर अब टिका है
पहले अपना करे सुधार.
युग आमंत्रण कर रहा है
सुने सदा इसकी पुकार .   
     

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