Friday, 9 May 2014

हमारी माँ



करुणामयी-ममतामयी
सेवामयी कहलाती माँ
आशामयी-श्रद्धामयी
शुभतामयी बन जाती माँ
बलिदानी सा पथ अपनाती
खुशियाँ सदा लुटाती माँ
वेदना की ताप में जलती
आंचल की छाँव बन जाती माँ
त्याग ही बस त्याग करती
स्नेह से लुट जाती माँ
आंच न आये सुत पर उनकी
खुद चट्टान बन जाती माँ
नन्ही सी मुस्कान के खातिर
अपनी जान गंवाती माँ
उसके बच्चे हो सबसे अच्छे
सुन्दर सोच अपनाती माँ
खुद जीवन की सुध न लेती
तप-साधना बन जाती माँ
जब सबल हो जाते बच्चे
दुखदायी बन जाती माँ
बच्चों से जब आश लगाती
तब आखें छलकाती माँ
               उम्र की एक पराव पर आती    
तब हताश बन जाती माँ
सारा जीवन बोझ ही लगता
जब गैरों सा बन जाती माँ .
  भारती दास ✍️ 
  

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