जीवन साँसें बहती है
स्वर्ण प्रात में, तिमिर गात में
जब मूक सी धड़कन चलती है
तब जीवन साँसे बहती है|
नवल कुन्द में, लहर सिंधु में
जब चाह मुखर हो जाती है
तब जीवन साँसें बहती है|
घन गगन में, धवल जलकण में
जब रिमझिम बूंदें गाती है
तब जीवन साँसें बहती है|
मधु-पराग में, भ्रमर-राग में
जब चंचल कलियाँ हँसती है
तब जीवन साँसें बहती है|
रवि के ताप में, पग के थाप में
जब गति शिथिल हो जाती है
तब जीवन साँसे बहती है|
प्रिय की आस में, हिय की प्यास में
नयन विकल हो बरसती है
तब जीवन साँसें बहती है|
जीवन में जब तक सांस है उसे बहना ही है ... यही गति है इसकी ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteजीवन के प्रति आशा और गहन विश्वास से भारी सुंदर रचना !
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिया जी
Deleteआपकी कविता तो जैसे सांसों की मूक आवाज़ बन गई हो। हर पंक्ति में एक शांत लेकिन गहराई से भरी लय है, मैंने जब पढ़ी तो लगा जैसे बारिश की पहली बूंदें मिट्टी को छू रही हों। “प्रिय की आस में, हिय की प्यास में”, ये लाइन पढ़ते ही मुझे वो पल याद आया जब दिल भरा था लेकिन कह नहीं पाया। ऐसा लगा जैसे शब्द मेरे जज़्बात चुपचाप बयां कर रहे हों।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन
ReplyDelete