Friday, 30 May 2025

जीवन साँसें बहती है

 जीवन साँसें बहती है

स्वर्ण प्रात में, तिमिर गात में

जब मूक सी धड़कन चलती है

तब जीवन साँसे बहती है|

नवल कुन्द में, लहर सिंधु में

जब चाह मुखर हो जाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

घन गगन में, धवल जलकण में

जब रिमझिम बूंदें गाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

मधु-पराग में, भ्रमर-राग में

जब चंचल कलियाँ हँसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

रवि के ताप में, पग के थाप में

जब गति शिथिल हो जाती है

तब जीवन साँसे बहती है|

प्रिय की आस में, हिय की प्यास में

नयन विकल हो बरसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

भारती दास ✍️

9 comments:

  1. जीवन में जब तक सांस है उसे बहना ही है ... यही गति है इसकी ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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  2. धन्यवाद सर

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  3. जीवन के प्रति आशा और गहन विश्वास से भारी सुंदर रचना !

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  4. Replies
    1. धन्यवाद प्रिया जी

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  5. आपकी कविता तो जैसे सांसों की मूक आवाज़ बन गई हो। हर पंक्ति में एक शांत लेकिन गहराई से भरी लय है, मैंने जब पढ़ी तो लगा जैसे बारिश की पहली बूंदें मिट्टी को छू रही हों। “प्रिय की आस में, हिय की प्यास में”, ये लाइन पढ़ते ही मुझे वो पल याद आया जब दिल भरा था लेकिन कह नहीं पाया। ऐसा लगा जैसे शब्द मेरे जज़्बात चुपचाप बयां कर रहे हों।

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  7. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन

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