Monday, 12 May 2025

जीवन प्रकृति के साथ है

 

भगवान बुद्ध ने साधा योग

छोड़कर राज पाट और भोग

शरीर को उन्होंने गला ही डाले

मन को अपने तपा ही डाले

हड्डी ही हड्डी रह गये थे

पेट पीठ में मिल गये थे

कमजोर वो इतने हो गये थे 

अपने आप न उठ सकते थे

ध्यान-मग्न में वे बैठे थे

दृग दुर्बल हो बंद हुये थे,

चौंक गई थी देवी सुजाता

प्रकट हुये हैं स्वयं विधाता

वृक्ष देव की पूजा करती थी

पूनम को खीर चढ़ाती थी

स्नेह नीर से पग को धोई

श्रद्धा से भरकर खीर खिलाई

बुद्ध देव को शक्ति आई

भक्ति सुजाता की मन भाई

फिर उनको ये ज्ञात हुआ

अबतक जो आत्म घात हुआ

नेत्रों में बिजली कौंध गई

बरसों-बाद साधना फलित हुई,

सब व्यर्थ है सब नाहक है

तनाव चिंता दुख पावक है

जीवन प्रकृति के साथ है

अहिंसा सुखद एहसास है

मन के देव हैं सहनशीलता

लक्ष्य तक जाता है गतिशीलता

सार्थक सोच से सुख पाता है

पथ मिथ्या अवरुद्ध करता है।

भारती दास ✍️ 

 

    

5 comments:

  1. बुद्धम् शरणम गच्छामि

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनीता जी

      Delete
  2. धन्यवाद सर

    ReplyDelete
  3. भगवान बुद्ध की साधना और त्याग का चित्र इतने जीवंत तरीके से पेश किया गया है कि उनकी तपस्या की पीड़ा और समर्पण महसूस होने लगता है। सुजाता की भक्ति और सेवा ने उनके जीवन में शक्ति भर दी, ये दिखाता है कि सहानुभूति और श्रद्धा कितनी महत्वपूर्ण होती है।

    ReplyDelete