सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ होने के कारण वसंत को ऋतुराज कहा जाता है.इस ऋतु के आगमन के साथ ही प्रकृति का सुन्दर स्वरुप निखर उठता है.पौधे नई-नई कोपलों और फूलों से आच्छादित हो जाते हैं.धरती सरसों के फूलों की वासंती चादर ओढ़कर श्रृंगार करती है.पुष्पों की मनमोहक छटा व कोयल की कूक सर्वत्र छा जाती है.प्रकृति सजीव जीवंत और चैतन्यमय हो उठती है.यही आनंद वसंत उत्सव के रूप में प्रकट होता है.मनुष्य के रग-रग में मादक-तरंग,उमंग व उल्लास की नव-स्फूर्ति भर जाती है.तन-मन और व्यवहार में सुन्दर एवम सुमधुर अभिव्यक्तियाँ झलकने लगती है.कहते हैं कि प्रकृति मुस्कुराती है तो जड़-जीव में भी मुस्कुराहट फ़ैल जाती है.वातावरण में व्याप्त सुगंध सभी घटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम होते हैं.विभिन्न सुरभियों से विचारों में दिव्यता और पावनता का अनुभव महसूस होने लगता है.ह्रदय स्वतः पुलकित हो उठता है.इससे संबंधों एवम रिश्तों में प्रगाढ़ता और आत्मीयता का बोध प्रकट होता है.
प्रकृति जब तरंग में आती है तब वह गान करती है.इस गान में मनुष्य को समाज का दर्शन प्रतिबिम्ब होता है.जैसे प्रेम में आकर्षण,श्रद्धा में विश्वास और करुणा में कोमलता का एहसास होने लगता है.जीवन में कुछ नया करने की चाह जगती है.कोमल कल्पनायें कितने उत्सवों का आह्वान करने लगती है.जीवन की भावनाएं मधुपान करके मदमस्त होने लगते हैं.मन की तृषित आशाओं को मुराद मिल जाती है.
ये ऋतू तो शब्दातीत है.काव्यों व महाकाव्यों के अनंत भंडार है.आनंद की वर्षा करना तो इसका स्वाभाव है.यह पथ है मधुमासों का,विश्वासों का,
चिर अभिलाषाओं का, अनगिनत एहसासों का,श्रेष्ठतम संदेशों का, रंगों और सुगंधों का,प्रेम की अभिव्यक्तियों का और क्या कहूँ इस वसंत के रोमांच का,जिसके आने से संस्कृति को सद्ज्ञान और संस्कारों को नवजीवन मिलता है.
वासंती रंग है पवित्रता के,
उमंगें है प्रखरता के,इन रंगों में प्रभु का स्मरण छलकता है.विवेक के प्रकाश है तो वैराग्य के प्रभाष है,त्याग की पुकार है और बलिदान की गुहार है तभी तो भारत के सपूत निष्ठावान और शोर्यवान है.ऋतुराज वसंत गूंजता है प्रेम में ,महसूस होता है लोक आस्था में,प्रणय की प्रतीक्षा में,भावना की उत्कंठा में,सभ्यता के जुड़ाव में,प्रकृति की उत्साह में वसंत एक सत्य है .यों ही उसे कुसुमाकर नहीं कहते हैं.
वसंत मन की धरती पर सरसों के खेत में पीली चुनर ओढ़कर चुपके से आता है.धरा के नयन से झांकता है.पत्ता-पत्ता पुलकित होता है.जिस तरफ भी नजर जाती है वहीँ आनंद की विभूति है.सचमुच वसंत एक अनुभूति है.कामनाएं जाग जाती है.आलस भाग जाती है.मनमोर खुशियों से भरी होती है.सुर-सुंदरी के कदम पड़ने से घर-आंगन-चौबारे दमक उठते हैं.चारों ओर बहारें छा जाती है.वासंती छटा निखर उठती है.
वसंत ज्ञान की देवी भगवती सरस्वती की जन्म-दिवस भी है.सृष्टि के आदिकाल में मनुष्य को इसी शुभ अवसर पर विद्द्या-बुद्धि,ज्ञान-संवेदना का अनुदान मिला था.भगवती वीणा-पाणि की अनुकम्पा ने विश्व वसुधा की शोभा-गरिमा में चार चाँद लगाये हैं.ज्ञान की अवतरण से वसंत और भी अति पावन बन जाता है.ज्ञान ही वह निधि है जो मानव के साथ जन्मों तक यात्रा करती है. वसंत मानवता का महान संदेशवाहक है.नई दिशा प्रदान करते हैं.आशा है सबको वसंत की सुखद अनुभूति हो.
ज्ञान की घटक भरे,
संवेदना छलक पड़े
स्नेह वृन्द महक उठे,
सद्भाव के सुमन खिले
सशक्त राष्ट्र भक्ति हो,
साहस अपार शक्ति हो
लक्ष्य वेध दृष्टि हो
ये वसंत सुख वृष्टि हो.
भारती दास ✍️
बहुत अच्छा लगा आपका आलेख।
ReplyDeleteवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ🙏
धन्यवाद सर
Delete"यह पथ है मधुमासों का,विश्वासों का,चिर अभिलाषाओं का, अनगिनत एहसासों का,श्रेष्ठतम संदेशों का, रंगों और सुगंधों का,प्रेम की अभिव्यक्तियों का।"
ReplyDeleteअद्भुत और अप्रतिम सजन । हार्दिक शुभकामनाएं ।
धन्यवाद मीना जी
Deleteकृपया *सृजन* पढ़ें ।
ReplyDeleteसुन्दर लेखनी
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर आलेख, सुंदर भाव काव्य।
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम जी
Deleteज्ञान के अवतरण से वसंत और भी पावन बन जाता है.ज्ञान ही वह निधि है जो मानव के साथ जन्मों तक यात्रा करती है. सही कहा है, वसंत पर बहुत सुंदर सृजन !
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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