ऋतुराज संग लाया बहार
मादक भरी बहती बयार सुंदर मधुर कोमल सा प्यार खोया कहां निर्मल करार. मुरझा रहा बागों में फूल सहमा बहुत है सुमन-समूल कुपित व्यथित हो उड़ा है धूल क्यों वृंत-वृंत में उगा है शूल. शत्-शत् मधुप गूंजा करते थे पुष्प सुगंध बिखरा करते थे कलरव विहग किया करते थे पुलकित प्रकृति हंसा करते थे. मुख सरोज हर्षा करते थे दृग युगल बहका करते थे स्नेह मिलन की हुआ करते थे अराध्य चरण की दुआ करते थे. पथ खो गया वो आदर्श वंत क्यों हो रहा कुत्सित ये मत मन है मलीन अंतर है क्षुब्ध शोणित प्रवाह हो रहा समस्त. चुप शाख है तरु मौन है संकल्प सारे गौण है झुलसा रहा तन कौन है क्यों बेरहम सा कौम है. निज रोष को सारे समेट अनुराग भरे उर में प्रत्येक करे त्याग कटुता और क्लेश धारण करे मृदुता का वेश भारती दास ✍️ |
Friday, 14 February 2020
ऋतुराज संग लाया बहार
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कविता
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