फूल और शूल संग रहते हैं
एक ही वृन्त पर खिलते हैं
भिन्न-भिन्न गुण होते हैं
विवश शाख सब सहते हैं.
उर में दाह कंठ में ज्वाला
दर्प का कांटा विष का प्याला
कुलिश सदा देते हैं दर्द
चुभकर तन को देते कष्ट.
अंधरों पर मुस्कान सजाती
परोपकार में जान गंवाती
धरा साक्षिणी हरपल होती
जो करते बलिदान स्वप्न की.
सौम्य सुमन मन को हर्षाता
कठोर शूल बस दंश ही देता
स्वाभाव मानव का भी है ऐसा
फूल और शूल के गुणों के जैसा.
एक ही वृन्त पर खिलते हैं
भिन्न-भिन्न गुण होते हैं
विवश शाख सब सहते हैं.
उर में दाह कंठ में ज्वाला
दर्प का कांटा विष का प्याला
कुलिश सदा देते हैं दर्द
चुभकर तन को देते कष्ट.
अंधरों पर मुस्कान सजाती
परोपकार में जान गंवाती
धरा साक्षिणी हरपल होती
जो करते बलिदान स्वप्न की.
सौम्य सुमन मन को हर्षाता
कठोर शूल बस दंश ही देता
स्वाभाव मानव का भी है ऐसा
फूल और शूल के गुणों के जैसा.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-08-2019) को "लेखक धनपत राय" (चर्चा अंक- 3415) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर
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