महीने भर का था परिश्रम
परिवेश सुखद बन आया
हर्ष-उल्लास-उमंग से भरकर
वार्षिक उत्सव आज मनाया.
न्योछावर था कण-कण में आशा
था अर्पण हिय की अभिलाषा
प्रति-पल प्रेम ह्रदय का
छलका
नाच रही थी लहर-लहर में
इक आनंद की माया,
वार्षिक उत्सव आज मनाया.
अहंकार निज तज बैठे थे
स्नेह-मिलन में रंग बैठे थे
अभिनव पुलकित भाव उठे थे
इन बचपन के मृदु-गुंजन से
सीख अनूठी पाया,
वार्षिक उत्सव आज मनाया.
उन्मुक्त हँसी शोभित अधर
चंचल-कोमल रूप प्रखर
मीठे-मीठे मोहक सा स्वर
ख़ुशी में डूबा था ये अवसर
उर में अनुराग समाया,
वार्षिक उत्सव आज मनाया.
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