Saturday, 5 November 2016

हे दिनकर हे माता षष्ठी



भोर की ये किरण सुनहरी
करते हैं आरोग्य प्रदान
प्राणतत्व में अपनी ऊष्मा से
भर देते मधुमय सी तान.
जग के नियंता पिता की भांति
बरसाते अपना अनुदान
जीवन पथ का दुर्गम तल
समझाते वे सुबहा-शाम.
रूढि-रीतियां जाति-श्रेणियां
संबंधों में भर कर
ऋतुओं की सुषमा से शोभित
छठ का पर्व है सुन्दर.
देह मन बुद्धि अहं
कुछ भी ना हावी होता
भावना बस पुष्पित होकर
अपनापन ही पाता.
वृक्षों के पत्ते-पत्ते में
प्रेम-प्रकाश भर आता
ऋतुरानी के अनुगुंजन से
मुग्ध ये तन-मन होता.
उषा के संग आते सूर्य
प्रत्युषा के संग में जाते
षष्ठी-माता के संग मिलकर
वरदान अनंत दे जाते.
हे दिनकर हे माता षष्ठी
दूर करो उलझन तमाम
पूर्ण करो अभिलाषा मन की
हे माता हे देव प्रणाम.  

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