हे हंस वाहिनी
शारदे
अज्ञानता से उबार दे , हे .............
सुन्दर छवि शोभा अपार
नैनों में छाई है खुमार
इक बार माँ तू निहार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे............
तू श्वेत पद्दम विराजती
हस्त वीणा धारती
वरदंड की झंकार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे ...............
जग की दशा है दीन-हीन
मानव हुआ है पथविहीन
शुभता-भरी माँ विचार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे ...............
हे अम्ब अब ना विलम्ब कर
सब भूल को जगदम्ब
हर
कर अपना तू माँ पसार दे
अज्ञानता से उबार दे
हे हंस वाहिनी शारदे
भारती दास ✍️
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