Friday, 12 June 2015

उद्देश्य सफल हो जाता है



आनंद स्रोत बह रहा है
क्यों उदास होता है ये मन .
चिर नवीन ये चिर पुराण है
अमृतमय इसमें  स्पंदन .
प्रकृति करती है परिवर्तन
विचलित होता जड़ व चेतन .
नभ में उड़ते विहग ये कहते
जीवन एक संग्राम है केवल .
क्यों हताश होता है ये मन
क्यों निराशा देती है मार .
भरी शिथिलता कैसी मन में
क्यों लगता जीवन बेकार .
जग के निर्मम कोलाहल में
शांति डूबी जाती  है .
नशेबाजी के इस फैशन में
स्व-ज्योति बुझी जाती है .
आस्तिकता का ढोंग है भारी
नास्तिकता भी सच्ची नहीं .
सेवा-शिष्टाचार नहीं तो
दुर्व्यसन भी अच्छी नहीं .
 कितनी रातें बीती सिसकती
कितने आंसू बहाते हम .
कहाँ से आये कहाँ है जाना
यही सोच घबराते हम .
वो वायु का सुन्दर झोंका
सुखद स्पर्श करा जाता है .
जो पुष्प खिलते डाली पर
वो सब भी मुरझा जाता है .
नूतन चोला धारण करके
जीवन यात्रा निकल जाता है .
प्रभु चरणों में नतमस्तक हो
        उद्देश्य सफल हो जाता है .       

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