आनंद स्रोत बह
रहा है
क्यों उदास होता
है ये मन .
चिर नवीन ये चिर
पुराण है
अमृतमय
इसमें स्पंदन .
प्रकृति करती है
परिवर्तन
विचलित होता जड़ व
चेतन .
नभ में उड़ते विहग
ये कहते
जीवन एक संग्राम
है केवल .
क्यों हताश होता
है ये मन
क्यों निराशा
देती है मार .
भरी शिथिलता कैसी
मन में
क्यों लगता जीवन
बेकार .
जग के निर्मम
कोलाहल में
शांति डूबी
जाती है .
नशेबाजी के इस
फैशन में
स्व-ज्योति बुझी
जाती है .
आस्तिकता का ढोंग
है भारी
नास्तिकता भी
सच्ची नहीं .
सेवा-शिष्टाचार
नहीं तो
दुर्व्यसन भी
अच्छी नहीं .
कितनी रातें बीती
सिसकती
कितने आंसू बहाते
हम .
कहाँ से आये कहाँ
है जाना
यही सोच घबराते
हम .
वो वायु का
सुन्दर झोंका
सुखद स्पर्श करा
जाता है .
जो पुष्प खिलते
डाली पर
वो सब भी मुरझा
जाता है .
नूतन चोला धारण
करके
जीवन यात्रा निकल
जाता है .
प्रभु चरणों में
नतमस्तक हो
उद्देश्य सफल हो
जाता है .
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