व्यास नदी ने ले-ली जान
माँऐं हो गयी निःसंतान
ह्रदय विदारक देख के मंजर
रो रहा मन तड़प-तड़पकर
विधाता ने की ऐसी परिहास
मिटा दर्प और मिट गयी आस
मौत मिली जो उन्हें अकाल
कहाँ मिलेंगे वो माँ के लाल
दूध का कर्ज चुकाया नहीं
जिम्मेदारी निभाया नहीं
हर गलती की सजा
है मिलती
फर्क है इतना की
किसे है मिलती
निर्दोष यूँ ही
मर जाते हैं
रक्षक बात बनाते हैं
जहाँ पर मन-मानी
की हद है
सर्वनाश तो
सुनिश्चित है
हो हुकूमत ऐसी
शासन
जो रखे कायम
अनुशासन
है ईश्वर से इतनी
विनती
मिले उनकी आत्मा
को शांति .
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