Sunday, 7 July 2013

उजड़े चमन में फिर बस जाओ



                           
 
खुशियाँ  वीरान हो गई
भूमि  श्मशान  हो गई
कतरा-कतरा में दर्द समाया
जर्रा-जर्रा में मातम छाया
अनायास जो गिरी गाज है
असहाय  वे हुए आज है
अवरुद्ध हो गए सारे पंथ
हो गया है अपनों का अंत
रोजी-रोटी  छीन  गई है
प्रलय की धारा बह गई है
बुझ  गए घर  के चिराग
अंधकार  में डूबी  समाज
अनाथ हुये जो बच्चे -बूढ़े
वो  किसमे अपनापन ढूंढे
बच गए हैं जो  भी जीवन
उनको शक्ति दे दो भगवन
हे नाथ उनका रखवाला कौन
कबतक  आसूं  पिएगा मौन
आसमान से उतर के आओ
दुखियों में शामिल हो जाओ
पालनकर्ता  बन  कर आओ
उजड़े चमन में फिर बस जाओ

   भारती दास  

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