Thursday, 30 October 2025

अध्यात्म से ही कर्म-जगत है

 

ऊषा अर्चन-संध्या वंदन

प्रतिदिन का है धर्म-आचरण 

ईश्वर की पूजा और आराधना 

आशपूर्ण आस्था की भावना 

आस्तिक करता है विश्वास 

धर्म-कर्म और स्वर्ग की खास।

लेकिन नास्तिक कहता है 

लोग समय को नष्ट करता है 

परलोक का कोई सुधार नहीं है 

स्वर्ग-नर्क का आधार नहीं है 

किसने देखा है मृत्यु के बाद 

लय-गति होता प्राण का वास

यह है सिर्फ संभावना मात्र 

नहीं पता है स्वर्ग की बात।

ईश्वर का अस्तित्व वैज्ञानिक 

नहीं किया है अभी प्रमाणित 

मिथ्या है या फिर अनिश्चित 

पूजा का नियम बनाता दैनिक 

पाठ सिखाता है यह नैतिक

अनुशासन से बाँधा है आस्तिक।

अध्यात्म से ही कर्म-जगत है 

भक्ति से ही भक्त सहज है

छल-प्रपंच ना करे कपट

ईश्वर की शक्ति रहे सतत्

यह केवल एक भ्रांति है 

मौत सभी को आती है।

भारती दास ✍️ 

5 comments:

  1. यह मानने की नहीं जानने की बात है

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  2. मुझे ये कविता बहुत पसंद आई क्योंकि इसमें आस्तिक और नास्तिक दोनों दृष्टिकोणों को बहुत संतुलित ढंग से दिखाया गया है। आस्तिक की भक्ति और नास्तिक की तर्कशीलता, दोनों ही यहाँ एक-दूसरे के विरोध में नहीं, बल्कि पूरक लगते हैं। भाषा सरल है, पर भाव गहरे हैं।

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  3. जीवन चक्र को बेलाग लिखा ... बहुत सुन्दर ...

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