Wednesday, 20 November 2024

ईश का साथ सदा होता है

नियति कैसी हुई है अपनी 

प्राण, दास बनकर बैठा है 

सतत् संघर्ष भरा है पथ में 

दुर्बल तन-मन ऊब चुका है।

शीत पवन के शक्ति बल से 

थककर मैं तो गिरी बहुत हूं 

निर्बल बनकर रही हमेशा 

ताप भ्रांति की सही बहुत हूं।

रजनी निद्रा के संग में यूं 

जब भी मन विचलित होता है 

अदृश्य रूप वाणी ये कहती

ईश का साथ सदा होता है।

मस्तक में छाई अतृप्ति 

चिर विषाद बन जाता है 

यही विडंबना है जीवन का

अवसाद अश्क बन बह जाता है।

भारती दास ✍️ 

Monday, 28 October 2024

मोह रात्रि करती विश्राम


गाओ-गाओ कोमल स्वर में

विहग बालिके मंगल गान

तरूवर गोद में छुप-छुप कर 

तुम अबोध देती मुस्कान।

शरद-शिशिर का स्वागत करती

बसंत का गाती गुणगान 

सीख तुम्हीं से हम लेते हैं 

हर पल है जीवन का मान।

स्वर्ण सुख उषा ले आती

थकी गोधूलि ढलती है शाम

दुःख-सुख का सहचर दिवस है 

मोह रात्रि करती है विश्राम।

मकड़ी के जालों में सांस 

उलझ-उलझ जाता है प्राण

नश्वर जगत में नहीं है शांति 

अविरत चलता जीवन-संग्राम।

भारती दास ✍️ 

Saturday, 12 October 2024

दिव्य सौम्य सुंदर श्री राम


आदर्श की पराकाष्ठा

राष्ट्र की आस्था 

सनातन की आत्मा 

भक्ति की भावना।

जीवन के आरंभ में 

मध्य और अंत में 

सत्य तथा संघर्ष में 

तुलसी जी के छंद में।

तारक मंत्र राम ही

भक्त आराधक राम ही 

समर्थ शासक राम ही 

परलोक सुधारक राम ही।

दानशील प्राणसाधक

धर्मशील प्रजापालक

समस्त गुणाधार व्यापक

दुष्ट-खल चित्त के संहारक।

प्रियजन पुरजन में श्री राम 

गुरुजन सज्जन में विद्यमान 

एकता समता में अभिराम 

करूणा ममता में हैं अविराम।

दुःख में सुख में मुख में राम

जाति वर्ग में मित्र में राम

हर जन के मन में भगवान 

दिव्य सौम्य सुंदर श्री राम ।

भारती दास ✍️

Tuesday, 24 September 2024

मेरे बाबूजी अच्छे थे


मेरे बाबूजी अच्छे थे

मन के वे सीधे सच्चे थे

उनको देखा मैंने हर क्षण

उनकी सीख है जीवन दर्शन।

सेवा ही उनकी शिक्षा थी 

निष्ठा ही उनकी दीक्षा थी 

निज सर्वस्व किये थे अर्पण 

उन चरणों का करते वंदन।

हमसे इतने दूर गये हैं 

सबसे मुख वे मोड़ गये हैं 

तोड़ के सारे नाते बंधन 

बहता ऑंखों से अश्रुकण।

उर विचलित जब भी होता है 

गम पीड़ा से घबराता है 

देखते उनको मन के दर्पण

यादों में बसते हैं हरदम। 

भारती दास ✍️ 


 ग्यारहवीं बरसी पर विनम्र श्रद्धांजलि 🙏 🙏

Sunday, 22 September 2024

देव ने सुंदर उपकार किया

 देव ने सुंदर उपकार किया

आंचल में बेटी उपहार दिया 

एक मनमोहक उदगार दिया

स्नेह का रूप आकार दिया 

जीवन में सुख संचार किया।

सौन्दर्य सरोवर चिर मंगल हो 

हृदय प्रणय से पूर्ण सकल हो

पथ उत्साह से भरे सफल हो 

मृदु अधर पर खिले कमल हो

तुमने स्वप्न साकार किया।

सब बाधाओं का कटार बनो

तुम चंडी सा अवतार बनो

है शक्ति तुममें स्वीकार करो

तुम जन-जन का आधार बनो

मैंने दुआ यही हर बार किया।

भारती दास ✍️ 


Monday, 19 August 2024

हे नीलकंठ अंबर से उतरो

 


नित्य कुपथ बनता दुर्जन का

क्यों शिव तुममें शक्ति नहीं है?

उम्मीदें सब टूट रही है 

क्या नारी की मुक्ति यही है ?

असुर निरंतर कुचल रहे हैं 

शील संयम के तारों को 

दुःखद अंत करता जीवन का

सुनता नहीं चीत्कारों को।

स्वजन परिजन चीखते रहते 

क्रंदन करता मां-बाप का मन 

निडर दरिंदा घूमता रहता 

पिशाच बनकर रात और दिन।

प्राण से प्यारी सुकुमारी को 

कैसे बचायें महाकाल बता

रौद्र रूप फिर अपनाओ तुम 

मिटा दो दैत्यों की क्षमता।

हे नीलकंठ अंबर से उतरो 

अब आश तुम्हीं से है जग की

निष्ठुर बलि जो सुता चढ़ी है 

न्याय मिले है दुआ सबकी।

भारती दास ✍️ 

Wednesday, 14 August 2024

हे प्रवीर सैनिकों

धीर वीर सैनिकों

शूरवीर सैनिकों

तुम पर नाज़ है हमें

हे प्रवीर सैनिकों

धीर वीर सैनिकों....

तुम सतर्क व्याघ्र से

तुम समर्थ साहसी 

मुश्किलें अनंत है 

चुनौतियॉं अथाह सी 

धीर वीर सैनिकों....

राष्ट्र के सपूत तुम 

सजग देशभक्त तुम 

जन सुरक्षा के लिए 

जागते हो रात दिन 

धीर वीर सैनिकों....

आतंकी उग्रवाद से 

गोली की बौछार से 

जीतते हो रण सदा 

वीरता अपार से

धीर वीर सैनिकों....

रहते सबसे दूर तुम 

सहते क्लेश और गम

मातृभूमि के लिए 

बहाते लाल रक्त तुम 

धीर वीर सैनिकों....

भारती दास ✍️ 

Wednesday, 31 July 2024

सजल मेघ सावन के कारे


सजल मेघ सावन के कारे

झरझर बहता अम्बु द्वारे

पुलकित विह्वल वर्षा के स्वर

ऋतु रानी को पास पुकारे।

यह धरती यह नीला अंबर

प्राणवान है तुमसे ईश्वर 

तुम अपना आवास बनाते 

दीन-दुखी प्राणी के अंदर।

जिनका जग में कोई न सहचर 

तुम उसके रखवाले शंकर 

'ओम' शब्द की ध्वनि निरंतर 

गूंज उठा है जागो दिगंबर।

दिन जीवन का ढलने आया 

सांध्य दीप जलने को आया 

सब सर्वस्व समर्पित करके 

शरण में आने का क्षण आया।

भारती दास ✍️

Wednesday, 17 July 2024

कौआ-कोयल दोनों हैं काले


बालक ने पूछा माता से

कौआ-कोयल दोनों हैं काले 

पिक को मिलता मान सदा ही 

काग को क्यों कहते बड़बोले.

मां ने कहा, सुन मेरे प्यारे 

रुप कभी नहीं देता सम्मान 

भावनाओं का आधार है वाणी 

जो कोयल की होती पहचान.

अपनी मीठी मोहक सुर में

कोयल कू-कू करती रहती 

गम सारे दुःख दूर हटाकर

स्मित होंठों पर ले आती.

कौआ,कर्कशता के कारण 

जन सामान्य से होता है दूर 

कर्णप्रिय नहीं होती बोली 

स्वार्थी धूर्त होता भरपूर.

क्षणिक आकर्षण रूप का होता 

गुण जीवन भर साथ निभाता 

अप्रिय वचन कठोर स्वभाव 

कभी मनुष्य को रास न आता.

प्रेम-पगी शीतल सी वाणी 

विश्वास अनंत भर देती है 

क्रंदन करता हृदय-नीड़ से

अवसाद समस्त हर लेती है.

भारती दास ✍️ 


Sunday, 30 June 2024

विह्वल होती यह धरती है

 


पीले पीले तरू पत्रों पर

दिखी आज तरूनाई है 

अंतर के कोलाहल में भी 

हर्ष सुखद फिर छाई है।

धरा पुत्र स्वार्थी बन बैठा 

क्लांत प्रकृति अकुलाईं है 

सुख अमृत दुख गरल बना है 

चोट स्पंदन की दुखदाई है।

शीतल पवन गाता था पुलकित 

हृदय कुसुम खिल जाते थे

अतृप्त मही की दृष्टि पाकर

व्योम तरल कर देते थे।

प्रीत रीत से भी है ऊपर

जैसे नभ के घनमय चादर

प्रेम से भरकर बूंदें गिरते 

भू के हर कोने में जाकर।

उमड़ घुमड़ कर मेघ गरजते 

बिजली चमचम करती है 

तृण-तृण पुलक उठा है सुख से 

विह्वल होती ये धरती है।

भारती दास ✍️ 


Saturday, 15 June 2024

सब दोष मति का मूल है

 संतप्त हृदय बैठा चिड़ा था 

चिड़ी भी थी मौन विकल

निज शौक के लिए उड़ चला 

संतान जो था खूब सरल‌।

उसके पतन में था नहीं 

मेरा जरा भी योगदान 

स्वछंद तथा स्वाधीन था 

सुख स्वप्न का उसका जहान।

मन से, वचन से ,कर्म से 

मैं तो सदा ही साथ था 

उसकी सरलता-धीरता पर

केवल किया सब त्याग था।

शैशव दशा में जब वो था

पीड़ा अनेकों थे सहे 

आचार और व्यवहार संग 

सद्ज्ञान उसमें थे गहे।

समय यूं ही व्यतीत हुआ 

बचपन छोड़ कर युवा हुआ 

सौन्दर्य के आभा तले 

संस्कार उसका फीका हुआ.

सपूत कुल का क्षय करें

ये सर्वथा प्रतिकूल है 

हठधर्म ही पाले सदा 

सब दोष मति का मूल है.

यह सोचकर निर्धन हुआ 

मैं मानधन से हो विहीन

बलहीन और निर्बल हुआ 

मैं पिता, अब दीन हीन।


भारती दास ✍️ 


Wednesday, 15 May 2024

गंगा तेरी शरण में आया


गंगा तेरी शरण में आया

तन-मन-धनसे तुझको ध्याया

माँ सुन लो मेरी मनुहार....

तेरे शीतल निर्मल जल से

पाप-कलंक मैं धोया मन से

रखता हूँ मैं स्वच्छ विचार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

करूँ प्रतिज्ञा वादे और प्रण

जब तक है ये मेरा जीवन

देश बढेगा सौ-सौ बार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

मैंने अपना सब कुछ छोड़ा

जान हथेली पर ले दौड़ा

आज वक्त की यही पुकार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

तेरे जल में डूब मरूँगा

खाली हाथ नहीं जाऊंगा

यही प्रार्थना यही गुहार

मां सुन लो मेरी मनुहार ....

चरणों में ये सर झुका है

अब पीड़ा से मन थका है

दे-दे मैया स्नेह-दुलार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

भारती दास ✍️


                

Wednesday, 1 May 2024

मजदूर

 

नहीं बनता समाज बड़ों से

नहीं चलता सब काज बड़ों से 

कार्य कुशल व्यक्ति ही महान 

जिससे होती उसकी पहचान.

तूफानों के बीच में रहते 

अथक मनोबल मन में भरते

बारिश की बूंदों को सहते 

जी तोड़ मेहनत वो करते.

प्रखर ताप में तन को जलाते

ऊंचे ऊंचे महल बनाते 

खुद रहने खाने को तरसते

सच्चे हितैषी बनकर जीते.

वे कामचोर इंसान न होते 

चोर नहीं बे" इमान न होते 

लोकहित से जुड़े जो होते

वो सभी मजदूर ही होते.

मजदूर बिना कुछ काम न होता

जन समाज की शान न होता 

धर्म कर्म स्वाभिमान न होता 

इक दूजे का मान न होता.

भारती दास ✍️ 

Tuesday, 16 April 2024

राम अनंत और कथा अनंता


गहन अनुभूति श्री रामकथा है

अतुलित उमंग की परम प्रथा है

वाल्मीकि का मानस लोक

वर्णित धर्म अर्थ और मोक्ष

महाकवि भवभूति का कहना

है राम कथा करुणा की महिमा

पाप नाश करते भगवान

कर देते हर व्यथा निदान

पद्द्माकर –मतिराम, कवि  ने

मोहक –रूप अविराम छवि ने

राम रसायन  करके पान

वो पा गए दुर्लभ स्थान

भक्ति रस का सागर है ये

गौरवमय श्रद्धा आदर है ये

तुलसीजी थे जग विख्यात

वेद निहित थी उनकी बात

दोहे चौपाई सोरठा छंद

रामायण है अद्भुत ग्रन्थ

मुसलमान थे संत रहीम

वे राम बिना थे प्राणहीन

राम आदर्श जो करे समाहित

मोक्ष प्राप्ति से रहे न वंचित

तीनों तापों से होगी मुक्ति

राम नाम है ऐसी शक्ति

भारती दास✍️

Friday, 12 April 2024

मिथिला महान

 

जगत वंदनी जनक नंदिनी

सीता राम कें प्रणय जतऽ 

एहन सुन्दर पावन धाम 

जग में कहू छै और कतऽ .

छलथि विदेह तपस्वी राजा

विज्ञ अनंत परम विद्वान 

हुनकर यश जयनाद देखि कें

भेलथि अधीर इंद्र भगवान.

ध्वस्त भेल सब कालखंड में 

तैयो जीवित अछि ललित-ललाम

मौन वेदना सं भरल अछि 

परम पुनीत ओ अमृत धाम.

नष्ट-विनष्ट भेल एकता 

भेद-भाव बढ़ि गेल अनंत 

स्वजन विरोधी भऽ रहल छथि

संतप्त ह्रदय संदेह कें संग.

क्षोभयुक्त उन्माद समेटू 

चित्त में भरू कोमल अनुराग 

संस्कृति कें गौरवमय-गरिमा 

बनि रहल अछि दीन विषाद.

रहू जुड़ायेल सबकें जुड़ाऊ

जुड़िशीतल कें शुभ पैगाम 

हर्षित भय त्योहार मनाऊ 

विहुंस उठय ई मन और प्राण.          

भारती दास ✍️