दिन है छोटा रात बड़ी है
पौष माह की शीत घड़ी है....
मदिरा जैसी मादक रजनी
सौंदर्य सजाती जैसी सजनी
ललित लालसा ललक भरी है
पौष माह की शीत घड़ी है।
सूर्यदेव भी देर से आते
मुख पर अपने चादर ओढ़े
अरुणिम प्राची धूंध भरी है
पौष माह की शीत घड़ी है।
पवन बदन को कंपा रहा है
तन गर्माहट ढूंढ रहा है
अंगीठी भी धधक रही है
पौष माह की शीत घड़ी है।
अलसाई अंगराई लेती
शुभ्र प्रकृति सुखदाई लगती
लता गात पर ओस पड़ी है
पौष माह की शीत घड़ी है ।
भारती दास ✍️
वाह शीत ऋतु का मनमोहक वर्णन !
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteपोश मॉस को बाखूबी लिखा आपने ... प्रकृति का स्वरुप उतार दिया ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर 🙏
Deleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद सर 🙏
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