सजल मेघ सावन के कारे
झरझर बहता अम्बु द्वारे
पुलकित विह्वल वर्षा के स्वर
ऋतु रानी को पास पुकारे।
यह धरती यह नीला अंबर
प्राणवान है तुमसे ईश्वर
तुम अपना आवास बनाते
दीन-दुखी प्राणी के अंदर।
जिनका जग में कोई न सहचर
तुम उसके रखवाले शंकर
'ओम' शब्द की ध्वनि निरंतर
गूंज उठा है जागो दिगंबर।
दिन जीवन का ढलने आया
सांध्य दीप जलने को आया
सब सर्वस्व समर्पित करके
शरण में आने का क्षण आया।
भारती दास ✍️
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना आदरणीया
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteईश्वर की शरण में एक दिन सबको जाना ही पड़ता है, इसे जितनी जल्दी समझ जाय उतना जीवन सुखद बने,,,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
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