Saturday, 21 December 2024

धरती की कोख से

 

धरती की कोख से

अनेक पौधे फूट पड़े

दुर्भाग्यवश वे सभी 

आपस में ही लड़ पड़े।

स्वयं को ही श्रेष्ठवान

विवेकवान कहने लगे 

विवाद क्लेश बढ़ने लगा 

अभिमान में रहने लगे।

नित्य विरोध का जहर

सहर्ष ही पीते रहे

मानधन खोता गया 

विषाद बीज बोते रहें।

लड़ने झगड़ने में यूं ही 

वक्त सारे बह गये 

कुछ मिटे कुछ डटे 

कुछ दर्द को सह गये।

क्लांत मन तब रो उठा 

अवसर जब निकल गया

दंभ का महल ढ़हा 

मद धूल बन बिखर गया।

भारती दास ✍️

1 comment:

  1. वक़्त की चाल के आगे किसकी चली है ...

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