इतिहासों का पन्ना पढ़कर
आंदोलन का तेवर लेकर
धरा वक्ष पर रक्त बहाकर
हक जताने आया दिसंबर।
शौर्य का टीका सजा ललाट पर
गौरव गीता गाता विराट स्वर
प्रेम का परिचय देता पथ पर
स्वागत करता हृदय मंच पर।
वे झुके नहीं थे ,नहीं थे कायर
देश धर्म पर शीश कटाकर
बलिदान हुये थे तेग बहादुर
वे वीर रत्न है आज धरोहर।
गुरु गोविंद सिंह के पुत्र थे चार
निर्दय दुष्टों ने दिया था मार
था क्षोभ, रूदन था हाहाकार
रोया था कण-कण जार-जार।
मंदिर तोड़ा मस्जिद जोड़ा
निर्दोषों को उसने मारा
गांव-शहर-बस्ती उजाड़ा
क्रूर हिंसा से अहिंसा हारा।
करता आज भी अत्याचार
है रोष घोष का स्वर अपार
धीर मन करता है पुकार
जब मानवता की होती हार।
भारती दास ✍️
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteओजपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १० दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जो
Deleteइतिहास की याद दिलाती ओजपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
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