Wednesday, 17 July 2024

कौआ-कोयल दोनों हैं काले


बालक ने पूछा माता से

कौआ-कोयल दोनों हैं काले 

पिक को मिलता मान सदा ही 

काग को क्यों कहते बड़बोले.

मां ने कहा, सुन मेरे प्यारे 

रुप कभी नहीं देता सम्मान 

भावनाओं का आधार है वाणी 

जो कोयल की होती पहचान.

अपनी मीठी मोहक सुर में

कोयल कू-कू करती रहती 

गम सारे दुःख दूर हटाकर

स्मित होंठों पर ले आती.

कौआ,कर्कशता के कारण 

जन सामान्य से होता है दूर 

कर्णप्रिय नहीं होती बोली 

स्वार्थी धूर्त होता भरपूर.

क्षणिक आकर्षण रूप का होता 

गुण जीवन भर साथ निभाता 

अप्रिय वचन कठोर स्वभाव 

कभी मनुष्य को रास न आता.

प्रेम-पगी शीतल सी वाणी 

विश्वास अनंत भर देती है 

क्रंदन करता हृदय-नीड़ से

अवसाद समस्त हर लेती है.

भारती दास ✍️ 


6 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना, अप्रिय वचन कठोर स्वभाव
    कभी मनुष्य को रास न आता सच लिखा है आपने,

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. सुंदर बात ! वैसे कौए के दिन भी आते हैं जब श्राद्ध काल होता है

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद

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