जो धरा धाम से चले गये
वो सियाराम के हो ही गये....
हम जिनकी याद में रोते रहे
वो प्रभु की गोद में सोते रहे
कोई अमर नहीं दिन रात हुये
सूदूर क्षितिज में खो ही गये
जो धरा धाम से चले गये....
प्रहर दिवस कितने बीते
वो देखें नहीं पीछे मुड़ के
नेत्रों से झरझर नीर बहे
हतभाग्य बने असहाय रहे
जो धरा धाम से चले गये....
काल जाल बुनता अपना
छीन के सारा सुख सपना
न आनंद रहा न विनोद रहा
विक्षोभ अनंत अथाह रहा
जो धरा धाम से चले गये....
भारती दास ✍️
भाई जी की
ग्यारहवीं बरसी पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏
सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण सरस रचना
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