Thursday, 25 September 2025

मोह छोड़कर जाना होगा


नील गगन में घूम रही थी

तारों का मुख चूम रही थी 

फिर बादल ने आकर बोला 

नभ-प्राँगन में रहना होगा 

मोह छोड़ कर जाना होगा।

मैंने तो देखा था सपना 

अश्रु भरे थे सबके नयना

छूकर देखा अंगों को अपना

अभी साँस को बहना होगा 

मोह छोड़कर जाना होगा।

पूरे हुये अरमान बहुतेरे 

कुछ इच्छाएँ  रहे अधूरे

है अच्छे कर्मों का अर्जन

दुःख नहीं कुछ ,कहना होगा 

मोह छोड़कर जाना होगा।

स्नेहाशीष मैं दे जाऊँगी

प्रभु चरणों में जा बैठूँगी

और किसी से क्या कहूँगी

व्यथा असीम है सहना होगा

मोह छोड़कर जाना होगा।

भारती दास ✍️

मेरी पुण्यमयी सासू माँ गोलोक धाम

चली गई

Monday, 22 September 2025

हे जगदंब नमन स्वीकारो


अरुणिम प्रभात की वेला आई

घट सुमंगल सबने सजाई

द्वार-द्वार अंबे माँ आई 

सुख-सौभाग्य सौगातें लाई।

नवल वसन तन शोभित आई

केहरि वाहन हर्षित आई 

मुख अभिराम सुखद मन आई

अरविंद नयन मुस्काती आई।

शिथिल मनुज को जगाती आई

आश का दीप जलाती आई

जगत का कष्ट मिटाती आई

चित्त अनुराग बरसाती आई।

हे जगदंब नमन स्वीकारो

दुर्गम पथ पर दुर्गा निहारो

हे शैल सुता भक्तों को तारो

मुश्किल पल से सदा उबारो।

भारती दास ✍️ 




Saturday, 13 September 2025

निराकार पूँज में हो साकार


किये समाज में नींव की रचना

सीख अनमोल सी देकर अपना 

निराकार पूँज में हो साकार

जो चले गए हैं बादल के पार।

हास अधर पर आस नयन में 

पाठ सिखाये थे जीवन में 

क्षमा,दया, करूणा-व्यवहार 

जो चले गए हैं बादल के पार।

हो पाप,शाप तृष्णा से मुक्त 

शांत सुखद मुख होकर तृप्त 

छोड़कर सारा व्यथा-भार

जो चले गए हैं बादल के पार।

स्मृति में रहता पदचिन्ह 

अश्रुधार बहता निर्विघ्न 

करते हैं नमन, कहते आभार 

जो चले गए हैं बादल के पार।

भारती दास ✍️

बाबूजी के बारहवीं पुण्य-तिथि पर सादर श्रद्धाँजलि

Saturday, 30 August 2025

अपनी इच्छा पर निर्भर है

 

 अपनी इच्छा पर निर्भर है

जीवन में उत्थान-पतन 

शील स्वभाव उन्नत विचार से 

मानव पाता है नेह सुमन।

जिस तरूवर ने पाला पोसा 

प्राणों में रक्त संचार किया 

उसी वृद्ध पावन तरुवर को

क्रूरता से संहार किया।

तिरस्कृत है वह कटु भाषा 

जिससे टूटता हृदय की तार 

परवाह नहीं जिसे अपनों की

कष्ट वेदना देता है अपार।

उस घर का दुर्भाग्य सदा है 

होता जहाँ निष्ठुर व्यवहार 

पतित कर्म को करने वाले 

हमेशा पाता है दुत्कार।

अशुभ आचरण विकृत विचार 

नज़रों में सबके गिरा देता है

मन कुंठित होता ग्लानि से 

अपनों को जब खो देता हैं।

भारती दास ✍️

Thursday, 14 August 2025

भारत माँ के चरणों में

 

लंबे संघर्ष और असंख्य बलिदान

अनगिनत यातना और घोर अपमान 

मन पीड़ित और मूर्छित था प्राण 

था वीभत्स रूप में देश की आन ।

सुंदर सपना आजाद हुआ 

कर्म कुसुम भी आबाद हुआ 

उमंग-तरंग बल तंत्र हुआ 

देश ये प्यारा  स्वतंत्र हुआ ।

स्वर्ण प्रभात का धूप मिला 

अरमानों को नव रुप मिला 

साज़ आवाज अंदाज मिला 

कंधों से कंधों का साथ मिला ।

भारत माँ के चरणों में 

हरदम शीश झुकाएँगे

आजादी है सबको प्यारी 

उत्सव खूब मनाएँगे ।

भारती दास ✍️

Thursday, 7 August 2025

निर्मल पावन चंचल ये मन


है महीनों से उत्साहित हरदम

निर्मल-पावन चंचल ये मन

बरसों बाद ये मौका आया 

राखी का पर्व अनोखा आया 

आनंद मगन है उर-अंतर्मन 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

शैशव जैसा है उल्लास 

स्नेही भाई भी है खास 

सुख हो दुःख या हो कोई क्षण 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

भगवान रुद्र हरे सब व्यथा 

हो प्राप्त धन-यश सर्वदा 

सत्य-सरल सुखमय हो जीवन 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

प्रेम-सौहार्द का उन्मेष रहे

आशीष सदा ही विशेष रहे

हो सुंदर मंगलमय हर-पल 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

भारती दास ✍️ 



Thursday, 31 July 2025

नष्ट हुई एकता

 

नष्ट हुई एकता

दूरियांँ बढ़ने लगी 

अपेक्षाओं के भार से 

समस्याएँ गढ़ने लगी ।

विश्वास टूटने लगा 

कलह का आरंभ हुआ 

स्वजन के विरोध से

 मतभेद का नाद हुआ ।

स्नेह कहाँ खो गयी

दंभ का विकार हुआ

सुखमय सी स्मृतियाँ

संदेह का आधार हुआ ।

होगा नहीं मिठास अब

रिश्तों में दरार हुआ 

सत्य हारता गया 

वेदना अपार हुआ ।

अपनों का आदर नहीं 

खराब संस्कार हुआ 

क्षमा माँगते बड़े 

छोटे का व्यवहार हुआ ।

व्यथा विषाद कराह से 

क्लेश का संचार हुआ 

मौन रहें अब सर्वदा 

समाधान स्वीकार हुआ ।

भारती दास ✍️

Thursday, 24 July 2025

मन की कुंठा है

 ऊँचे ऊँचे पर्वत पर भी 

सागर की गहराई में भी 

सारे देश में गूँज उठी है 

भारत की आत्मा हिन्दी है ।

आसामी-गुजराती-मराठी 

क्षेत्रीय भाषा सबको नही आती 

फिर भी रहते मिलकर साथी 

नहीं उठाते भाषा पर लाठी ।

एक ही धरती एक ही आह्वान 

था रूदन-क्रंदन एक समान 

देश हित पर बलिदान हुये थे

उत्सर्ग सबने प्राण किये थे ।

जिनके कार्यों से उन्नति आई 

प्रगति की परचम लहराई 

उनके साथ ही हुई हाथापाई 

संकट अनेकों जीवन में आई ।

हिंसा-हत्या करने का बहाना 

समर भूमि भारत को बनाना 

निर्दोषों को अपमानित करना 

मजदूरों को प्रताड़ित करना ।

राजनीति की यह गंदी प्रथा है 

भाषा विवाद मन की कुंठा है 

उपद्रवियों की अपराधी धंधा है 

विकास की राह में हिन्दी सदा है ।

भारती दास ✍️ 



Tuesday, 15 July 2025

मौना पंचमी

 

श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की

तिथि पंचमी का है महत्त्व विशेष

शिव की पुत्री मनसा देवी की

पूजा करते हैं लोग अनेक  ।

नाग देवता की उपासना 

पंद्रह दिनों का है ये अनुष्ठान 

मौन-स्थिर शांत-चित्त से 

करते हैं पूजा विधि-विधान  ।

फल-फूल संग कई मिठाईयाँ

मेंहदी चूड़ी श्रृंगार भी खास

नव विवाहित सभी स्त्रियाँ

उत्साह से करती है उपवास ।

आम के बीज और नींबू-नीम

इस दिन लोग चबाते हैं 

माना जाता है ये सब चीजें 

सर्प की दंश से बचाते हैं ।

मौना पंचमी के दिन से ही

नाग की रक्षा है शुभ काम

धैर्य-संयम जीवन में आये

मिलती है सीख अनंत ही ज्ञान ।

मिथिला की हो मधुश्रावणी 

या सावन की हरियाली तीज 

उमा-महेश की करके वंदना 

सुहागन लेती है आशीष ।

भारती दास ✍️

Saturday, 28 June 2025

मही वंदिनी

 

मही वंदिनी करती गुहार

करो बैर न यूँ ही प्रहार

करते रहे घायल ये मन

चिथड़े किये आँचल-वस

नहीं शोभता जननी पर वार

मही वंदिनी करती गुहार....

रक्तों का होता है प्रवाह

अंग-अंग में है दर्द आह

बहता है दृग से अश्रु धार

मही वंदिनी करती गुहार....

तुम सारे मेरे पूत हो

नहीं भिन्न कोई रुप हो

चित्त से मिटाओ भ्रम विकार

मही वंदिनी करती गुहार....

सासों में बहता समीर है

मृदु गात पर अन्न नीर है

सहते कई पीड़ा का भार

मही वंदिनी करती गुहार....

ये सूर्य चंद्र उपहार है

निज सभ्यता ही संस्कार है

रखते मुखर आपस में प्यार

मही वंदिनी करती गुहार....

भारती दास✍️ 

 

Friday, 13 June 2025

विमान के विनाश का पल

 विमान के विनाश का पल

देखकर नेत्र हो गये सजल

ज्वालामुखी सा भीषण विस्फोट 

कैसे हुआ, है किसकी खोट

अनगिनत लाशों को लपेट  

लोहित अस्थियों को समेट

काल का तांडवमय सा नृत्य 

मूर्छित मुख श्मशान सा दृश्य 

क्रंदनमय था हाहाकार 

स्तब्ध लोग सुने चीख पुकार 

करूण विलाप विकल सी नाद

दर्द वेदना अगम सी विषाद 

अफ़रा तफ़री दौड़ धूप 

मृत्यु अथाह वीभत्स रूप 

किसे पता था है अंतिम क्षण 

अब नहीं होगा अपनों से मिलन

नन्हे नन्हे मासूम अनेक 

भेंट मौत के चढ़े प्रत्येक 

हे ईश्वर उन्हें सद्गति देना

निज चरणों की अनुरक्ति देना 

उन परिजन को शक्ति देना 

जिनका कुंज हो गया है सूना।

भारती दास ✍️ 


Wednesday, 4 June 2025

ज्येष्ठ माह है बड़ा ही व्यापक

 

रवि की प्रखरता चरम पर होती

तीव्र गर्म हवायें चलती

भीषण तपन दोपहर की होती

अकुलाहट तन-मन में होती|

प्रकृति का है अलग ही तंत्र

रहे शाश्वत उद्गम और अंत

बरसेगा जब अम्बू तरंग

ताप का ज्वाला होगा मंद|

ज्येष्ठ माह है बड़ा ही व्यापक

बड़ा मंगल है मंगलकारक

शनि-विष्णु है मोक्ष प्रदायक

वट-सावित्री भी शुभफलदायक|

संयम सेवा तप है सुखकारी

श्रीराम-हनुमान की भेंट है न्यारी

गंगा-दशहरा पावन पुण्यकारी

गायत्री जयंती भी है हितकारी|

भक्ति-शक्ति की रीत अनुपम है

अध्यात्म-धर्म की सीख परम है

उष्ण-तरल का प्रगाढ़ मिलन है

चिर-मंगल का साध सघन है|

भारती दास ✍️ 

 

Friday, 30 May 2025

जीवन साँसें बहती है

 जीवन साँसें बहती है

स्वर्ण प्रात में, तिमिर गात में

जब मूक सी धड़कन चलती है

तब जीवन साँसे बहती है|

नवल कुन्द में, लहर सिंधु में

जब चाह मुखर हो जाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

घन गगन में, धवल जलकण में

जब रिमझिम बूंदें गाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

मधु-पराग में, भ्रमर-राग में

जब चंचल कलियाँ हँसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

रवि के ताप में, पग के थाप में

जब गति शिथिल हो जाती है

तब जीवन साँसे बहती है|

प्रिय की आस में, हिय की प्यास में

नयन विकल हो बरसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

भारती दास ✍️

Monday, 12 May 2025

जीवन प्रकृति के साथ है

 

भगवान बुद्ध ने साधा योग

छोड़कर राज पाट और भोग

शरीर को उन्होंने गला ही डाले

मन को अपने तपा ही डाले

हड्डी ही हड्डी रह गये थे

पेट पीठ में मिल गये थे

कमजोर वो इतने हो गये थे 

अपने आप न उठ सकते थे

ध्यान-मग्न में वे बैठे थे

दृग दुर्बल हो बंद हुये थे,

चौंक गई थी देवी सुजाता

प्रकट हुये हैं स्वयं विधाता

वृक्ष देव की पूजा करती थी

पूनम को खीर चढ़ाती थी

स्नेह नीर से पग को धोई

श्रद्धा से भरकर खीर खिलाई

बुद्ध देव को शक्ति आई

भक्ति सुजाता की मन भाई

फिर उनको ये ज्ञात हुआ

अबतक जो आत्म घात हुआ

नेत्रों में बिजली कौंध गई

बरसों-बाद साधना फलित हुई,

सब व्यर्थ है सब नाहक है

तनाव चिंता दुख पावक है

जीवन प्रकृति के साथ है

अहिंसा सुखद एहसास है

मन के देव हैं सहनशीलता

लक्ष्य तक जाता है गतिशीलता

सार्थक सोच से सुख पाता है

पथ मिथ्या अवरुद्ध करता है।

भारती दास ✍️