थी धर्मपरायण पुण्यात्मा नारी
दुर्योधन-जननी माता गाँधारी
उनकी वचन मिथ्या नहीं जाती
सच हो जाता जो वह कहती
माँ के पास सुयोधन आता
विजय प्राप्ति का आशीष माँगता
एक ही उत्तर वो प्रतिदिन देती
जहाँ धर्म की पूजा होती
वहीं पर जय है वहीं विजय है
वहाँ ना कोई छल और भय है
जो धर्म की रक्षा करता है
वही विजयी कहलाता है
हठ विप्लव की वृष्टि करता
विनाश कर्म की पुष्टि करता
सुयोधन का आक्रोश देखकर
डरती थी मन में आठों पहर
मौन चुप हो जाती गाँधारी
व्यथा भार सहती लाचारी
उत्थान-पतन नियति करती है
अवलंबन भी छीन लेती है
शक्ति पूँज मन सहा आघात
चाहे उजड़ा सारा साम्राज्य
समस्त पुत्रों का हो गया अंत
छोड़ ना पाई धर्म का पंथ
मातृवत प्रेम में भीगी दृष्टि
थी वो प्रवित्र पावन सी मूर्ति
पाँडव धर्म के साथ चले
सतत् विजय उनको मिले।
भारती दास ✍️
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