बड़े-बड़े पेड़ों का मूल
प्रवाह में अपनी बहाती नदियाँ
किन्तु बेंत का पतला वृक्ष
नहीं बहा ले जाती नदियाँ।
कमजोर समझकर करती उपेक्षा
या उपकार कर देती नदियाँ
कोई खास रहस्य है गहरा
सीख नई समझाती नदियाँ।
प्रतिकूल बर्ताव के कारण
तरू बड़े बह जाते हैं
बेंत नदी के वेग भाँपकर
अपना शीश झुकाते हैं।
समय के साथ जो बुद्धि दिखाता
उसका विनाश नहीं होता है
सदा अकड़कर रहने वाला
वक्त की मार को खाता है।
विद्वान सदैव विनम्र ही रहते
उपकार सहज कर देते हैं
त्याग अति ना भोग अति हो
सत्य की मार्ग चुन लेते हैं।
युक्ति संगत बातें कहकर
अर्थपूर्ण मुस्काती नदियाँ
सरिताओं के स्वामी सागर
मुग्ध होते सुन गूढ़ नीतियाँ।
भारती दास ✍️
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