Saturday, 13 September 2025

निराकार पूँज में हो साकार


किये समाज में नींव की रचना

सीख अनमोल सी देकर अपना 

निराकार पूँज में हो साकार

जो चले गए हैं बादल के पार।

हास अधर पर आस नयन में 

पाठ सिखाये थे जीवन में 

क्षमा,दया, करूणा-व्यवहार 

जो चले गए हैं बादल के पार।

हो पाप,शाप तृष्णा से मुक्त 

शांत सुखद मुख होकर तृप्त 

छोड़कर सारा व्यथा-भार

जो चले गए हैं बादल के पार।

स्मृति में रहता पदचिन्ह 

अश्रुधार बहता निर्विघ्न 

करते हैं नमन, कहते आभार 

जो चले गए हैं बादल के पार।

भारती दास ✍️

बाबूजी के बारहवीं पुण्य-तिथि पर सादर श्रद्धाँजलि

6 comments:

  1. विनम्र श्रद्धांजलि

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  2. जो लोग “बादल के पार” चले गए, उनके योगदान और सीख को तुमने बहुत ही सुंदर तरीके से शब्दों में उतारा है। मुझे सबसे अच्छा लगा कि तुमने क्षमा, दया और करूणा जैसी शिक्षाओं को याद किया और उनके पदचिन्हों को सम्मान दिया।

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