किये समाज में नींव की रचना
सीख अनमोल सी देकर अपना
निराकार पूँज में हो साकार
जो चले गए हैं बादल के पार।
हास अधर पर आस नयन में
पाठ सिखाये थे जीवन में
क्षमा,दया, करूणा-व्यवहार
जो चले गए हैं बादल के पार।
हो पाप,शाप तृष्णा से मुक्त
शांत सुखद मुख होकर तृप्त
छोड़कर सारा व्यथा-भार
जो चले गए हैं बादल के पार।
स्मृति में रहता पदचिन्ह
अश्रुधार बहता निर्विघ्न
करते हैं नमन, कहते आभार
जो चले गए हैं बादल के पार।
भारती दास ✍️
बाबूजी के बारहवीं पुण्य-तिथि पर सादर श्रद्धाँजलि
विनम्र श्रद्धांजलि
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