Tuesday, 9 December 2025

कण-कण में है मोद का दर्पण

 

तृण-तृण में सौन्दर्य सुहावन

कण-कण में है मोद का दर्पण 

क्षमा-दया है जीवन-दर्शन 

संस्कृति में है चिर अपनापन

उसी पुण्यमयी धरणी का

करते हैं आराधन,

जय मातृभूमि मनभावन....।

बेला-गुलाब-चंपा का हँसमुख

पुष्प चढ़ाते जिनके सम्मुख 

मोर-पपीहा-कोयल-बुलबुल 

गाते सुन्दर सरगम का सुर

भारत माता के चरणों में

प्रकृति करती अभिवादन,

जय मातृभूमि मनभावन....।

गर्मी तपाती वर्षा भींगाती

हेमंत-शिशिर की निशा कँपाती

शरद ऋतु का चंद्र सुहाता 

वसंत ऋतु मन को हर्षाता

रोम-रोम सुख दर्शित होता

हँसता वसुधा का प्राँगन,

जय मातृभूमि मनभावन....।

अन्न नीर से पोषित करती 

सुखद समीर साँसों में भरती 

गिरि शिखर से उतर-उतरकर 

चंचल निर्मल जल बह-बहकर 

झरना-ताल-नदी-सरोवर

भू-गोद समाता है पावन,

जय मातृभूमि मनभावन....।

भारती दास ✍️ 

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