Saturday, 30 August 2025

अपनी इच्छा पर निर्भर है

 

 अपनी इच्छा पर निर्भर है

जीवन में उत्थान-पतन 

शील स्वभाव उन्नत विचार से 

मानव पाता है नेह सुमन।

जिस तरूवर ने पाला पोसा 

प्राणों में रक्त संचार किया 

उसी वृद्ध पावन तरुवर को

क्रूरता से संहार किया।

तिरस्कृत है वह कटु भाषा 

जिससे टूटता हृदय की तार 

परवाह नहीं जिसे अपनों की

कष्ट वेदना देता है अपार।

उस घर का दुर्भाग्य सदा है 

होता जहाँ निष्ठुर व्यवहार 

पतित कर्म को करने वाले 

हमेशा पाता है दुत्कार।

अशुभ आचरण विकृत विचार 

नज़रों में सबके गिरा देता है

मन कुंठित होता ग्लानि से 

अपनों को जब खो देता हैं।

भारती दास ✍️

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 1 सितंबर 2025 को लिंक की जाएगी है....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. सन्मार्ग की ओर चलने को प्रेरित करती सार्थक अभिव्यक्ति ।

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  3. बेहतरीन रचना आदरणीया

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  4. दोस्त, ये कविता पढ़कर लगा कि सच में इंसान का असली सौंदर्य उसके विचार और व्यवहार में छिपा होता है। जब कोई अपनों को ही आहत करता है या बुज़ुर्गों का अपमान करता है, तो उसका पतन तय है। मुझे सबसे असरदार पंक्ति लगी जहाँ तरुवर को संहार करने की बात है—ये सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि अपने ही पालनहार को ठुकराने जैसा है।

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  5. मन के भाव को बखूबी व्यक्त किया है आपने ...

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