Friday, 16 October 2015

दुर्गा दुर्गति नाशनि



                दुर्गा दुर्गति नाशिनि
            दुर्गा दुर्मति नाशिनि
            जयति जय जय शिखर वासिनी
            जयति जय जय मधुर लोचनी
            जयति जय जय अधर मोहिनी
            जयति जय जय असुर नाशिनी
            दुर्गा दुर्गति नाशिनी
            दुर्गा दुर्मति नाशिनी
            जयति जय जय सिंह वाहिनी
            जयति जय वरदंड धारिणी
            जयति जय जय मंद हासिनी
            जयति जय आनंद दायिनी
            दुर्गा दुर्गति नाशिनी
            दुर्गा दुर्मति नाशिनी
            जयति जय जय प्रनत पालिनी
            जयति जय जय जगत तारिणी
            जयति जय जय समस्त दायिनी
            जयति जय जगदंब व्यापिनी
            दुर्गा दुर्गति नाशिनी
            दुर्गा दुर्मति नाशिनी

Monday, 28 September 2015

बच्चे `भविष्य के कर्णधार है



माता-पिता की आकांक्षा ने
दशा ख़राब बना दी
बचपन की मासूम हंसी
अवसाद तले ही दबा दी
सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में
ख्वाब अनेकों मिटा दी
नन्हें-मुन्हें हाथों में तो
मोटी किताबें थमा दी.
खेलने कूदने की आयु में
शिक्षण बोझ बढ़ा दी
हो सुन्दर परिणाम हमेशा
आखों से नींद उड़ा दी.
बच्चों की तकलीफ ना देखी
घुटन दबाब बना दी
छोटी उम्र में बेचैनी की
मनोदशा सी सजा दी.
थके हारे बच्चे बेचारे
सोच ना पाते कभी भी
अपेक्षाओं को लेकर चलते
उन्मुक्त ना होते कहीं भी.
परेशानी से जूझते रहते
कह नहीं पाते कुछ भी
मनोबल भी टूटता रहता
व्यवहार से होते दुखी भी.
था वो बचपन प्यारा कितना
माता लोरी सुनाती
स्नेह से सर पर हाथ फेरती
नींद आखों में आती .
कोलाहल से दूर कहीं
सपनों में खूब विचरते
होठों पर हंसी थिरकती
उमंग-तरंग बिखरते.
बच्चों को अधिकार न देकर
यही कर्तव्य निभाते
छीनकर सुन्दर बचपन उससे
बुजदिल ही तो बनाते.
भविष्य के वो कर्णधार हैं
सबके आखों के तारे
निराश-हताश ना हो कभी भी
क्षमता उसकी स्वीकारे.      

Friday, 11 September 2015

भारत की संस्कृति महान



नद-नदियों की धारा जैसी
सबको समाहित करती वैसी
जो भी आया उसे बसाया
आत्मसात सबको कर पाया
विशिष्ट रही जिसकी पहचान
भारत की संस्कृति महान.
शक-हूण यूनान-कुषाण
थामकर हाथ चला इस्लाम
रहीम की भक्ति कबीर के दोहे
मीरा-सूर-तुलसी मन मोहे
धर्मों ने पाया सम्मान
श्रेष्ठ सदा है हिंदुस्तान .
अध्यात्म है भारत की आत्मा
परोपकार है धर्म भावना
विपन्न विषम की हो खात्मा
राष्ट्र हित की हो कामना 
अवरोधों का करके निदान
हिन्दी बने इस देश की शान।
जिस वेदों पर अभिमान है 
हो रहा उसका अवसान है
जिस संस्कृति की देते दुहायी
वही युगीन आवाज है आयी।
भारती दास ✍️ 
         



Friday, 4 September 2015

मनमोहन मुरलीधर श्याम



गरज-गरज घन बरस रहा है
चमक-चमक जाती बिजली
जन्म लिए वसुदेव के नंदन
देवकी फिर आहें भर ली।
मेढक का टर-टर सा स्वर है
गिरती है बूंदों की लड़ी
यमुना की कातिल सी लहरें
काली रातें स्याह भरी।
कपटी कुटिल कंस के डर से
वसुदेव चले गोकुल की ओर
नीरव रजनी भयानक इतनी
टूट पड़े हिम्मत की डोर।
प्रभु के दर्शन पाकर यमुना
हर्षित होकर शांत हुई
थम गयी उन्माद सी लहरें
पथ देकर आश्वस्त हुई।
लीलाधर की लीलाओं ने
सबके मन को मोह लिया
क्षण क्षण आती विपदाओं से
लड़ने का भी सोच लिया।
जीवन है कर्मों का संगम
ज्ञान में गीता सार दिया
मन के हर भावों में बसकर
सद्भावों का उपहार दिया।
पेम धुन वंसी में बजाकर
सौम्य रूप साकार किया
मुरलीधर के जनम का उत्सव
मन आनंद विभोर किया।  
भारती दास ✍️