माता-पिता की
आकांक्षा ने
दशा ख़राब बना दी
बचपन की मासूम
हंसी
अवसाद तले ही दबा
दी
सर्वश्रेष्ठ बनने
की धुन में
ख्वाब अनेकों
मिटा दी
नन्हें-मुन्हें
हाथों में तो
मोटी किताबें थमा
दी.
खेलने कूदने की
आयु में
शिक्षण बोझ बढ़ा
दी
हो सुन्दर परिणाम
हमेशा
आखों से नींद उड़ा
दी.
बच्चों की तकलीफ
ना देखी
घुटन दबाब बना दी
छोटी उम्र में
बेचैनी की
मनोदशा सी सजा दी.
थके हारे बच्चे
बेचारे
सोच ना पाते कभी
भी
अपेक्षाओं को
लेकर चलते
उन्मुक्त ना होते
कहीं भी.
परेशानी से जूझते
रहते
कह नहीं पाते कुछ
भी
मनोबल भी टूटता
रहता
व्यवहार से होते
दुखी भी.
था वो बचपन
प्यारा कितना
माता लोरी सुनाती
स्नेह से सर पर
हाथ फेरती
नींद आखों में
आती .
कोलाहल से दूर
कहीं
सपनों में खूब
विचरते
होठों पर हंसी
थिरकती
उमंग-तरंग
बिखरते.
बच्चों को अधिकार
न देकर
यही कर्तव्य
निभाते
छीनकर सुन्दर
बचपन उससे
बुजदिल ही तो
बनाते.
भविष्य के वो
कर्णधार हैं
सबके आखों के
तारे
निराश-हताश ना हो
कभी भी
क्षमता उसकी
स्वीकारे.
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