गरज-गरज घन बरस
रहा है
चमक-चमक जाती
बिजली
जन्म लिए वसुदेव
के नंदन
देवकी फिर आहें
भर ली।
मेढक का टर-टर सा
स्वर है
गिरती है बूंदों
की लड़ी
यमुना की कातिल
सी लहरें
काली रातें स्याह
भरी।
कपटी कुटिल कंस
के डर से
वसुदेव चले गोकुल
की ओर
नीरव रजनी भयानक
इतनी
टूट पड़े हिम्मत
की डोर।
प्रभु के दर्शन
पाकर यमुना
हर्षित होकर शांत
हुई
थम गयी उन्माद सी
लहरें
पथ देकर आश्वस्त
हुई।
लीलाधर की लीलाओं
ने
सबके मन को मोह
लिया
क्षण क्षण आती
विपदाओं से
लड़ने का भी सोच
लिया।
जीवन है कर्मों
का संगम
ज्ञान में गीता
सार दिया
मन के हर भावों
में बसकर
सद्भावों का
उपहार दिया।
पेम धुन वंसी में
बजाकर
सौम्य रूप साकार
किया
मुरलीधर के जनम
का उत्सव
मन आनंद विभोर
किया।
भारती दास ✍️
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