नष्ट हुए एकता
दूरियांँ बढ़ने लगी
अपेक्षाओं के भार से
समस्याएँ गढ़ने लगी ।
विश्वास टूटने लगा
कलह का आरंभ हुआ
स्वजन के विरोध से
मतभेद का नाद हुआ ।
स्नेह कहाँ खो गयी
दंभ का विकार हुआ
सुखमय सी स्मृतियाँ
संदेह का आधार हुआ ।
होगा नहीं मिठास अब
रिश्तों में दरार हुआ
सत्य हारता गया
वेदना अपार हुआ ।
अपनों का आदर नहीं
खराब संस्कार हुआ
क्षमा माँगते बड़े
छोटे का व्यवहार हुआ ।
व्यथा विषाद कराह से
क्लेश का संचार हुआ
मौन रहें अब सर्वदा
समाधान स्वीकार हुआ ।
भारती दास ✍️
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसत्य उकेरती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबेहतरीन
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