भगवान बुद्ध ने साधा योग
छोड़कर राज पाट और भोग
शरीर को उन्होंने गला ही डाले
मन को अपने तपा ही डाले
हड्डी ही हड्डी रह गये थे
पेट पीठ में मिल गये थे
कमजोर वो इतने हो गये थे
अपने आप न उठ सकते थे
ध्यान-मग्न में वे बैठे थे
दृग दुर्बल हो बंद हुये थे,
चौंक गई थी देवी सुजाता
प्रकट हुये हैं स्वयं विधाता
वृक्ष देव की पूजा करती थी
पूनम को खीर चढ़ाती थी
स्नेह नीर से पग को धोई
श्रद्धा से भरकर खीर खिलाई
बुद्ध देव को शक्ति आई
भक्ति सुजाता की मन भाई
फिर उनको ये ज्ञात हुआ
अबतक जो आत्म घात हुआ
नेत्रों में बिजली कौंध गई
बरसों-बाद साधना फलित हुई,
सब व्यर्थ है सब नाहक है
तनाव चिंता दुख पावक है
जीवन प्रकृति के साथ है
अहिंसा सुखद एहसास है
मन के देव हैं सहनशीलता
लक्ष्य तक जाता है गतिशीलता
सार्थक सोच से सुख पाता है
पथ मिथ्या अवरुद्ध करता है।
भारती दास ✍️
बुद्धम् शरणम गच्छामि
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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