धरती माता बिलख रही है
क्रूर आतंक के डंकों से
कब तक यूँ बलिदान करेंगे
पुत्र को अपनी अंकों से|
विनाश का दीप जला बैठा है
पाप के सौदागारों ने
निर्दोषों को मारता रहता
पाषाण हृदय खूंखारों ने|
द्वेष भाव से भरी आत्मा
शोणित ही तो बहाती है
दुर्भावों के पोषण से ही
प्रपंच अनेकों रचती है|
शैल शिखर स्तब्ध चकित है
देखकर उन हत्यारों को
रक्त-बीज सा रक्त-पिपासु
रिपु-घाती गुनाहगारों को|
धरा वंदिनी माँ के सम्मुख
मौत सुतों की होती है
दुर्भाग्यों को नियति मानकर
विवश सी आँसू बहाती है|
भारती दास ✍️
मार्मिक रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteधरती माता बिलख रही है”, ये लाइन सुनते ही दिमाग में शहीदों की माएँ घूमने लगती है, जो हर दिन अपने लाल को खोकर भी चुप रहती हैं। कई बार न्यूज में देखा है जब किसी जवान की शहादत की खबर आती है, तो अंदर कुछ चुभता है। लेकिन आपने उस चुभन को कविता बना दिया। ये सिर्फ शब्द नहीं हैं, ये एक सच्ची चीख है
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