Sunday, 4 May 2025

विनाश का दीप जला बैठा है

 


 

धरती माता बिलख रही है

क्रूर आतंक के डंकों से

कब तक यूँ बलिदान करेंगे

पुत्र को अपनी अंकों से|

विनाश का दीप जला बैठा है

पाप के सौदागारों ने

निर्दोषों को मारता रहता

पाषाण हृदय खूंखारों ने|

द्वेष भाव से भरी आत्मा

शोणित ही तो बहाती है

दुर्भावों के पोषण से ही

प्रपंच अनेकों रचती है|

शैल शिखर स्तब्ध चकित है

देखकर उन हत्यारों को

रक्त-बीज सा रक्त-पिपासु

रिपु-घाती गुनाहगारों को|

धरा वंदिनी माँ के सम्मुख

मौत सुतों की होती है

दुर्भाग्यों को नियति मानकर

विवश सी आँसू बहाती है|

भारती दास ✍️

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