Tuesday 6 April 2021

अन्तर्मन भी हरपल कहता

 


      
      मूक बधिर हो या कोई व्यक्ति
      तलाश सुखों की होती सबकी
      चाहत होती हर एक मन की

हो भविष्य सदा सुंदर सी…
अनुकूल जहां होता है पोषण
अनुरुप वहां होता है बचपन
परंपरा संस्कार का दर्शन
दर्शाता परिवार का चित्रण…
अनुचित आदत रहन-सहन
दम तोड़ता प्रेम समर्पण
नहीं होता कोई अपनापन
दुर्भाग्य ढोंग का होता दर्पण…
शैशव में ही भरता विकार
पनपता रहता द्वेष अपार
टूटता-बिखरता घर संसार
मलते हाथ होते लाचार…
माता-पिता भी तब पछताते
जब महत्व पैसे को देते
बुरी आदतें घर कर जाते
स्वयं समाज से रहते अछूते…
कर्म की खेती चलता रहता
जो बोता है वही है फलता
अंतर्मन भी हर-पल कहता
बदी के बदले बदी ही मिलता…

भारती दास ✍️





 

 




 

 


8 comments:

  1. सार्थक सन्देश देती रचना ...

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    1. धन्यवाद संगीता जी

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  2. बहुत सुन्दर रचना और सार्थक सन्देश।

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  4. कर्म की खेती चलता रहता
    जो बोता है वही है फलता
    अंतर्मन भी हर-पल कहता
    बदी के बदले बदी ही मिलता…
    सार्थक सृजन।।।।।

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  5. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन

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  6. धन्यवाद अनुराधा जी

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