Tuesday 29 December 2020

जा रहा है वर्ष ये बीस



बेरोजगार निष्काम बनाया
प्राणहीन निष्प्राण बनाया
खूब रुलाया खूब सताया
घर-घर में संकट ही लाया
देकर ढेरों ही दुख टीस
जा रहा है वर्ष ये बीस....
कुछ शर्म है कुछ ग्लानि है
जितने दिये लाभ हानि है
मनमर्जी कुछ मनमानी है
लापरवाही कई, शैतानी है
झुकाकर अपना ही शीश
जा रहा है वर्ष ये बीस....
फिर उम्मीद की बंधेगी डोर
फिर से होगी मोहक भोर
मंदिर में घंटे की शोर
होठों पर स्मित विभोर
होगी फिर खुशियों की जीत....
जा रहा है वर्ष ये बीस....
प्रीती-नीति का भाव विधान
मस्जिद में आयत की तान
स्वजन नेह का मान गुमान
फिर से हंसेगा हिंदुस्तान
विहग मधुर गायेगी गीत
जा रहा है वर्ष ये बीस....
भारती दास









8 comments:

  1. सार्थक रचना।
    आने वाले नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

      Delete
  4. सार्थक सटीक ।
    सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी

      Delete
  5. धन्यवाद सर

    ReplyDelete