Friday, 7 August 2015

भारत है गांवों का देश



भारत है गावों का देश
हरियाली है इसकी वेश
रीति-रस्म-रिवाज विशेष
उपेक्षित कुंठित नेत्र निमेष.
बुराइयाँ हो लाखों हजार
वो होते हों भले गंवार
उर में उनके बसते है प्यार
निश्छल प्रेम करते व्यवहार.
कभी होते सूखे से बेहाल
कभी बाढ़ों से होते बदहाल
धन से भी होते तंगहाल
फिर भी जीते हैं हर हाल.
सम्पूर्ण जगत का प्राण आधार
वहां पर फसलें होती तैयार
जहाँ ना होती कोई सुधार 
जहाँ गरीबी है बेशुमार.
रफ़्तार की उस दौड़ से अनभिज्ञ है
जिस शोर से आहत हुआ मर्मज्ञ है
जन  हितैषी और विवेकी विज्ञ है
मिष्टभाषी पारदर्शी सर्वज्ञ है.
समस्या का हो निराकरण
सुन्दर सुविधा हो परिपूरण
सरल सुलभ हो आवागमन
क्यों करे फिर कोई पलायन.
गाँव बदले तो बदलेगा देश
साक्षरता में संभलेगा देश
विकासशील कहलायेगा देश
अतुल रम्य बन जायेगा देश.

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