अक्षर बोध ही
नहीं कराते
वो देते हैं शक्ति का
पूंज.
जीवन भर का चिंतन
देते,
भरते चेतना का
अनुगूँज.
गुरु रूप नारायण
होते,
जो हरते पथ के
अंधकार.
पतन-पराभव की
पीड़ा से,
वो लेते तत्काल
उबार.
देह शिष्य है
प्राण गुरु है,
मन शिष्य तो गुरु
विचार.
संबंधों की
अनुभूति में,
गुरु-शिष्य का है
आधार.
राम-कृष्ण
पुरुषार्थ बनाया,
और विवेका सा
विद्वान.
ऐसे समर्थ गुरु
को नमन है,
जो करते हैं
पोषित सद्ज्ञान.
कुरुक्षेत्र-रणक्षेत्र
बना था,
जहाँ गवाये लाखों
जान.
रक्त ही रक्त का
प्यासा बनकर,
ले लिए थे अपनों
के प्राण.
पद-पंकज में वंदन
उनको,
जिसने लिखे थे
ग्रन्थ महान.
उनके ज्ञान की
रश्मि से ही,
देश है अपना
प्रकाशवान.
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