संघर्षों के कठिन
सफर में
यातनाओं के पीड़ित
प्रहार में
अश्क भरी आखों
में सपने
था संजोया सेनानी
अपने
रुंधे गले से
गाया था गान
देश पे होना है
कुर्बान.
सालों पहले हुये
स्वाधीन
दशा-दिशा अब भी
गमगीन
मस्तिष्क भ्रमित
है विचारहीन
संघर्ष-रत है दीन
हीन
विपदाओं से होकर
परेशान
आहुति प्राण का
दे रहे किसान.
लोभ-लालच की
राहें चुनकर
आत्मघाती बन रहा
निरंतर
अंतर में
निष्ठुरता भरकर
जान गंवाता जानें
लेकर
क्या उनका था यही
अरमान
जो देश पर हो
चुके बलिदान.
पवित्र-तीर्थ
भूमि के समान
देश है अपना
हिंदुस्तान
संस्कृति है इसकी
पहचान
गीता गंगा गौ
महान
आन है इसके कर्मठ
किसान
शान पर इसके
मिटते हैं जवान.
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