तरुण तान गलियों में गाता
आई होली धूम मचाता
हाथ बढ़ाकर द्वेष भुलाता
प्रेम प्रीत का रंग लगाता.
भाई चारे का ढंग सिखाता
त्योहार हमें संदेश ये देता
समरसता पलकों में समाता
संताप हृदय का दूर
भगाता.
रक्ताभ अरूण धरती से कहता
अभिनव सुंदर रुप सुहाता
चिर मिलन की है विह्वलता
प्रणय की मदिरा दृग से बहता.
दिग-दिगंत में है मादकता
हर्ष उमंग अंगों में भरता
सुभग कामना दिल ये करता
रहे सुखद होली की शुभता.