Saturday 18 September 2021

नारी की महता

 

नारी परिवार की मुख्य धूरी है इसके बिना किसी परिवार की कल्पना कभी नहीं की जा सकती.परिवार की स्थिति-परिस्थिति क्या है कैसी है इसकी जिम्मेदारी उस परिवार की नारी पर ही है परन्तु स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार उसे नहीं मिलता.

अपने परिवार को समृद्ध करने के लिए परिश्रम करती है, प्रार्थनायें-व्रत और उपवास करती है.वो कई भूमिकाओं में जीवित होती है ----- बेटी ,बहन ,पत्नी और माँ इत्यादी हर भूमिकाओं में स्नेह दुलार और ममता लुटाती है,बेटी के रूप में माता-पिता का गौरव बढाती है,बहन के रूप में भाई को सहयोग करती है,पत्नी के रूप में पति के दुःख-सुख की सहभागिनी होती है तथा अपने धर्म का पालन करती है.माँ के रूप में अनगिनत कष्ट और पीड़ा सहकर एक नए अस्तित्व को आकार देकर नए जीवन को संवारती है.

जिस घर में स्त्री के किसी भी रूप का अभाव होता है उस अभाव को सहज ही महसूस किया जा सकता है.घर को संभालने वाली परिवार के हर सदस्य की सेवा करने वाली सबके सुख दुःख का ध्यान रखने वाली स्त्री घर की सौभाग्य लक्ष्मियाँ ही तो होती है.परन्तु आधुनिकता के अभिशाप से ग्रसित लोग उनके सेवा भाव व कार्य के महत्व को नजर अंदाज करते है उन्हें कमतर आंकते हैं.ऐसी सोच वाले घरेलू स्त्री को प्रतिभाहीन समझते हैं.उनके विचार से वही नारी श्रेष्ठ है जो नौकरी करती है,धन कमाती है अर्थोपार्जन में पुरुष का हाथ बंटाती है.सच तो यह है कि घर की देख भाल करने वाली,बच्चों के शील संस्कार और शिक्षा पर ध्यान देने वाली नारी का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता.जीवन के संचालन में धन महत्वपूर्ण है ये हमसब जानते हैं लेकिन धन ही सब कुछ हो ये सही नहीं है.

 घरेलू नारी भले ही कोई कमाई नहीं करती हो परन्तु घर के अनगिनत कामों को करके पैसा भी बचाती है और घर में ख़ुशी का माहौल बना पाती है.घर की साफ-सफाई करना, नाश्ता-खाना बनाना,कपड़े धोना,बच्चों को पालना व परवरिश करना आसान नहीं है साथ में शील-संस्कार और संवेदना की बातें भी करना तो फिर उनकी हैसियत को कम आंकना कहां की बुद्धिमानी है.

घरेलु नारी के काम-काज के बारे में यही सोचते हैं कि उसे ये सब हर-हाल में करना है जिसके लिए उसे स्नेह और सम्मान नहीं मिलता है. लोगों की इस सोच की वजह से वो मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से पल-पल आहत होती है.

व्यापक और गहन परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि परिवार व समाज का नींव नारी के उन्ही कामों पर टिकी है जो कही पर दर्ज नहीं होता.ग्रामीण जीवन में नारी के योगदान के बिना कृषि कार्य संभव ही नहीं है.कहीं-कहीं देखने को मिली है कि शिक्षित नारियों ने अपनी उच्च शिक्षा के वाबजूद सोच समझकर हाउस वाइफ बनना स्वीकार किया है ताकि वे अपने घर-परिवार को पर्याप्त समय दे सके,बच्चों के भविष्य बना सके.वे घर-परिवार के रोजमर्रा के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपनी शिक्षा का सदुपयोग कर अपना मूल्यांकन कर सके. अतः लोग और समाज नारी के कार्य को समझे अपनी मानसिकता बदले जिससे कई समस्यायें यूँ ही सुलझ जाएगी.अधिकतर लोग ये तो जरुर मानते हैं कि घर-परिवार की शोभा नारी ही है जो शक्ति-रूपिणी,ज्ञान-रूपिणी व लक्ष्मी-रूपिणी होती है.                                                            

विमल-भावना दृष्टी से झरती 

तृप्त मोह ममता से करती

सेवा संयम शिक्षण देती  

पावन जिसकी चिन्तन होती 

विपदाओं को थामके चलती                        

पलकों पर सावन को रखती  

नैनों में सपनो को सजाती 

उर सागर से प्रेम बहाती

वही नारी शक्ति कहलाती 

चिर वंदिता सदा वो होती.

भारती दास ✍️


8 comments:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  2. नारी की महत्ता को दिखाता सुंदर आलेख !

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  3. बहुत सुंदर सृजन ।

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी

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  5. घरेलु नारी के काम-काज के बारे में यही सोचते हैं कि उसे ये सब हर-हाल में करना है जिसके लिए उसे स्नेह और सम्मान नहीं मिलता है. लोगों की इस सोच की वजह से वो मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से पल-पल आहत होती है.
    बिल्कुल सही कहा आपने...
    यही वजह है कि आर्थिक सक्षम और घर में अत्यंत जरूरत होने पर भी आज नारियां मात्र गृहणी बनकर नहीं रहना चाहती और बच्चों को क्रैच में छोड़ नौकरी कर रही हैं।
    बहुत ही चिन्तनपरक सृजन।

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद सु‌धा जी

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