Saturday 19 September 2020

गुमराह हो रहा युवा

 

https://vinbharti.blogspot.com/2020/09/blog-post_19.html

धुआं-धुआं हुआ जहां
गली-गली यहां-वहां
नशे में झूमता फिज़ा
विनाश पथ चला युवा.
चुनौतियों से भागता
विकृतियों को थामता
क्षुद्र-स्वार्थ के लिए
अपराध कर रहा युवा.
महत्त्वाकांक्षा की राह में
सफलता की चाह में
होनहार बोधवान
गुनाह कर रहा युवा.
विलासिता में पल  रहा
अश्लीलता में ढल रहा
कुपथ-कुसंग के लिए
विद्रोह कर रहा युवा.
स्वछंदता प्रमुख रही
ममता बिलख रही
घर-समाज के लिए
गुमराह हो रहा युवा.
गुरुर किसको है यहां
कुसूर किसका है कहां
मिथ्या मान के लिए
मदान्ध बन रहा युवा.
भारती दास




 

 

8 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. बहुत सुंदर धन्यवाद

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  3. बहुत सराहनीय रचना |

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  4. सही कहा है .. कोई तो इन्हें रोके ।

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी

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