Thursday 11 February 2016

हे हंसवाहिनी शारदे



 हे हंस वाहिनी शारदे
अज्ञानता से उबार दे , हे .............
सुन्दर छवि शोभा अपार
नैनों में छाई है खुमार
इक बार माँ तू निहार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे............
तू श्वेत पद्दम विराजती
हस्त वीणा धारती  
वरदंड की झंकार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे ...............
जग की दशा है दीन-हीन
मानव हुआ है पथविहीन
शुभता-भरी माँ विचार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे ...............
हे अम्ब अब ना विलम्ब कर
सब भूल को जगदम्ब  हर
कर अपना तू माँ पसार दे
अज्ञानता से उबार दे
हे हंस वाहिनी शारदे

No comments:

Post a Comment