Thursday, 30 April 2020

पहन मुखौटा वेश बदलते


ऊंची इमारत सड़क बनाते
टूटी चीजें मरम्मत करते
हठ करते वो जिद्दी होते
श्रमिक ये सारे ऐसे होते.
जन सुविधा को सजाये रहते
विश्वास सबों से बनाये रहते
भूख प्यास को दबाये रहते
गम अनेकों छुपाये रहते.
रिश्ते नाते समाज के वादे
निभाते निर्मम मोह के धागे
कैसे कहां पर फंसे अभागे
रो पड़ते निज व्यथा के आगे.
लोग भावना बदलते रहते
मानवता को निगलते रहते
धर्म के पथ से निकलते रहते
अन्याय की राह पर चलते रहते.
पहन मुखौटा वेश बदलते
विद्वान विज्ञ तो वेद बदलते
सत्कर्म सहायक रंग बदलते
समाज के नायक ढंग बदलते.
छद्म-अछद्म का मुखौटा संगम
सत्य-असत्य कह देता क्षण-क्षण
बहती सांसों का ये सरगम
छलते नही है कभी अंतर्मन.
भारती दास

 

Friday, 17 April 2020

शाम धरा की विकल बहुत है

शाम धरा की विकल बहुत है
नेत्र युगल क्यों सजल बहुत है....
दिवस का सूनापन अकुलाता
भाव अनेकों मन घबराता
स्वजन मिलन के नियम बहुत है
शाम धरा की विकल बहुत है....
क्षुब्ध है अवनी मूक गगन है
आर्त करुण करता बचपन है
संकल्प ये संयम कठिन बहुत है
शाम धरा की विकल बहुत है....
शाप है किसका दोष किसी का
झेल रहा जन त्रस्त दुखी सा
घाव दंश की जलन बहुत है
शाम धरा की विकल बहुत है....
मजदूरों को इस अवसर पर
भूख मिटाये बनकर ईश्वर
रीत धर्म की सरल बहुत है
शाम धरा की विकल बहुत है....
इक दूजे से दूर रहे सब
क्लेश का कंटक मुक्त करे अब
आश सफल हो पहल बहुत है
शाम धरा की विकल बहुत है....
भारती दास ✍️





Thursday, 2 April 2020

अभियान सफल हो अब भूतल में


धर्मगुरू की अनुचित बात
दुष्कर्म कृत्य की बनी विसात
भीषण संहार का प्रवाह बनकर
फैल रहा है दिन और रात.
विध्वंस नाश ये क्लेश ये पीड़ा
हाहाकार मचा जग सारा
विश्व विषाद से जूझ रहा है
हुआ पराजित सुरक्षा घेरा.
दुराचार की निर्ममता हाय
इस दीन दशा का क्या हो उपाय
रुधिर बलि की भूमिका रचकर
आहत किया धार्मिक समुदाय.
कोरोना की बढ़ती रफ्तार
चिन्ता-ग्रस्त हुआ संसार
मानवता की धर्म निभाकर
स्वदेश प्रेम का करे विचार.
जीवन में आशों को बढ़ाते
स्पंदन सांसों का बचाते
सेवा समर्पण अर्पण करके
नयनों में ख्वाबों को सजाते.
कर्मसाधना जिनकी हो अपार
वो सेवा कर्मी क्यों खाते मार
नही देखते जात-पात वो
करते हैं सबका उपचार.
प्रहर दिवस ये पुलिस हमारे
रक्षक बनकर देते सहारे
अनुनय विनय से समझाते हैं
रहे सुरक्षित घर में सारे.
संकट के क्षण में घिरे हैं
विपद घड़ी के जाल पड़े हैं
यही समय है साथ खड़े हो
शुभ संकल्प जो मन में भरे हैं.
भवन के अंदर सुख शीतल में
आनंद से बैठे स्नेहिल पल में
दृढ प्रतिज्ञ कर लें अंतर में
अभियान सफल हो अब भूतल में.
भारती दास






Friday, 20 March 2020

महामारी का खौफ हटाकर


मंदिर-मस्जिद सूना-सूना
गुरुद्वारे में मौन अपार
गिरजाघर भी खाली-खाली
संकट में है हाट बाजार.
गलियों में पसरा सन्नाटा
बंद है सारे घर और द्वार
मौत न जाने कहां खड़ी हो
सहमा है सारा संसार.
पाप मनुष्य का उभर रहा है
पुण्य हुआ बेबस लाचार
पल-पल जीवन बिखर रहा है
बन रहा यम का आहार.
कक्षा का हर कोना खाली
चुपचाप है सारे फर्श दीवार
महामारी के खौफ हटाकर
शिक्षकगण बैठे हैं उदार .
शिक्षण पद की शान बढायें
या सेहत का करे विचार
महामारी का भय व्याप्त है
हौसला पर हो रहा प्रहार.
रिश्तों में न पले मिलावट
टूटे ना मनुहार दुलार
सावधानी बरतें सब मिलकर
संयमी बनकर करें उपकार.
तन-मन स्वस्थ रहे सुरक्षित
रहे सलामत परिजन परिवार
साहस संबल सहयोगों की
बहती रहे पावन सी बयार.
भारती दास





 

Saturday, 7 March 2020

नारी ईश की अद्भुत कृति


नारी ईश की अद्भुत कृति
पल में ही वो वंदित होती
क्षण में ही वो कामना पूर्ति
नारी ईश की अद्भुत कृति....
सुख विभावरी की छलना सी
सुरभित अंचल की गरिमा सी
शीतल झरनों की अनुभूति
नारी ईश की अद्भुत कृति....
अनंत रुप की परिभाषा सी
तृप्त अतृप्त की अभिलाषा सी
पर पसार निज पथ उड़ जाती
नारी ईश की अद्भुत कृति....
सांझ किरण की दीपशिखा सी
खुद हर लेती तम कुटिया की
स्वजन नेह पर लुटती जाती
नारी ईश की अद्भुत कृति....
भारती दास ✍️
विश्व महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 


Thursday, 20 February 2020

चंद्रेश,भूतेश भुजंग ग्रीवा


 चंद्रेश,भूतेश भुजंग ग्रीवा
विषपान नहीं समाधान सदा
करता है नमन मन-प्राण शिवा
कल्याण करो हे प्रदोष प्रभा.
संहार-सृजन की युगल क्षमता
शिव'नाम है अमृत की वर्षा
हे ओम'स्वरुप प्रखर-महिमा
अपराध करो हे देव क्षमा.
हे रूद्र न रोष कर विकट प्रहर
क्यों मौन हो बैठे शैल शिखर
हर व्यथा वेदना गौरी वर
हे सती पति शुभमय शंकर.
भारती दास ✍️
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं


Friday, 14 February 2020

ऋतुराज संग लाया बहार

ऋतुराज संग लाया बहार
मादक भरी बहती बयार
सुंदर मधुर कोमल सा प्यार
खोया कहां निर्मल करार.
मुरझा रहा बागों में फूल
सहमा बहुत है सुमन-समूल
कुपित व्यथित हो उड़ा है धूल
क्यों वृंत-वृंत में उगा है शूल.
शत्-शत् मधुप गूंजा करते थे
पुष्प सुगंध बिखरा करते थे
कलरव विहग किया करते थे
पुलकित प्रकृति हंसा करते थे.
मुख सरोज हर्षा करते थे
दृग युगल बहका करते थे
स्नेह मिलन की हुआ करते थे
अराध्य चरण की दुआ करते थे.
पथ खो गया वो आदर्श वंत
क्यों हो रहा कुत्सित ये मत
मन है मलीन अंतर है क्षुब्ध
शोणित प्रवाह हो रहा समस्त.
चुप शाख है तरु मौन है
संकल्प सारे गौण है
झुलसा रहा तन कौन है
क्यों बेरहम सा कौम है.
निज रोष को सारे समेट
अनुराग भरे उर में प्रत्येक
करे त्याग कटुता और क्लेश
धारण करे मृदुता का वेश
भारती दास

 



Saturday, 25 January 2020

सिर पर हिम का ताज सुशोभित


सिर पर हिम का ताज सुशोभित
जिस चरणों को धोता सागर
गंगा यमुना सारी नदियां
जहां पर भरती स्नेह की गागर.
जहां कबीर रहीम के दोहे
सिखलाते हैं प्रेम की आखर
जहां बुद्ध की सुंदर वाणी
कर देते हैं सत्य उजागर.
जहां गुरु नारायण होते
राम कृष्ण लेते अवतार
जहां मित्र के हाल पर रोते
करूणाकर के नेत्र  बेजार.
जहां कुरान की आयतें देती
अल्ला की रहमत अपार
 गीता की पावनता कहती
कर्म का फल है जीवन सार.
जहां भेद नहीं करता था
हिन्दू मुस्लिम के ललकार
क्यों भीषण आतंक मचाता
दिल्ली के बेशर्म गद्दार.
धूल धूसरित हो रही है
वीरों का स्नेहिल उपकार
जिसने शिशिर सर्द हवा को
झेला था भर के उदगार.
श्रद्धा सुमन करते हैं अर्पण
दिया जिन्होंने जीवन हार
उन धरणी सुत के यादों में
आज मनाये राष्ट्रीय त्योहार.
भारती दास

 

Thursday, 16 January 2020

चित्र यही है इस जीवन की


चित्र यही है इस जीवन की
प्रेम पिपासा उलझन मन की
अरमानों के उड़ते रथ पर
अभिलाषा के बढ़ते पथ पर
नूतन रमणी रुपसी बनकर
अगणित रुप उमंग की भरती...
चित्र यही है इस जीवन की....
पवन के झोंके संग हर्षाती
झूम झूम कर गीत सुनाती
चंचल बाला बन इतराती
कर्म कुसुम सी हर-पल खिलती
चित्र यही है इस जीवन की....
सुख दुख है अपना ही साथी
फिर क्यो ढोये क्षोभ उदासी
नित्य सुबह होती सुंदर सी
छलती रहती उम्र तृषा की ....
चित्र यही है इस जीवन की....
भारती दास