Saturday 25 January 2020

सिर पर हिम का ताज सुशोभित


सिर पर हिम का ताज सुशोभित
जिस चरणों को धोता सागर
गंगा यमुना सारी नदियां
जहां पर भरती स्नेह की गागर.
जहां कबीर रहीम के दोहे
सिखलाते हैं प्रेम की आखर
जहां बुद्ध की सुंदर वाणी
कर देते हैं सत्य उजागर.
जहां गुरु नारायण होते
राम कृष्ण लेते अवतार
जहां मित्र के हाल पर रोते
करूणाकर के नेत्र  बेजार.
जहां कुरान की आयतें देती
अल्ला की रहमत अपार
 गीता की पावनता कहती
कर्म का फल है जीवन सार.
जहां भेद नहीं करता था
हिन्दू मुस्लिम के ललकार
क्यों भीषण आतंक मचाता
दिल्ली के बेशर्म गद्दार.
धूल धूसरित हो रही है
वीरों का स्नेहिल उपकार
जिसने शिशिर सर्द हवा को
झेला था भर के उदगार.
श्रद्धा सुमन करते हैं अर्पण
दिया जिन्होंने जीवन हार
उन धरणी सुत के यादों में
आज मनाये राष्ट्रीय त्योहार.
भारती दास

 

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