चित्र यही है इस
जीवन की
प्रेम पिपासा उलझन मन की
अरमानों के उड़ते रथ पर
अभिलाषा के बढ़ते पथ पर
नूतन रमणी रुपसी बनकर
अगणित रुप उमंग की भरती...
चित्र यही है इस जीवन की....
पवन के झोंके संग हर्षाती
झूम झूम कर गीत सुनाती
चंचल बाला बन इतराती
कर्म कुसुम सी हर-पल खिलती
चित्र यही है इस जीवन की....
सुख दुख है अपना ही साथी
फिर क्यो ढोये क्षोभ उदासी
नित्य सुबह होती सुंदर सी
छलती रहती उम्र तृषा की ....
चित्र यही है इस जीवन की....
भारती दास ✍️
प्रेम पिपासा उलझन मन की
अरमानों के उड़ते रथ पर
अभिलाषा के बढ़ते पथ पर
नूतन रमणी रुपसी बनकर
अगणित रुप उमंग की भरती...
चित्र यही है इस जीवन की....
पवन के झोंके संग हर्षाती
झूम झूम कर गीत सुनाती
चंचल बाला बन इतराती
कर्म कुसुम सी हर-पल खिलती
चित्र यही है इस जीवन की....
सुख दुख है अपना ही साथी
फिर क्यो ढोये क्षोभ उदासी
नित्य सुबह होती सुंदर सी
छलती रहती उम्र तृषा की ....
चित्र यही है इस जीवन की....
भारती दास ✍️
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शनिवार 18 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद यशोदा जी
Deleteवाह बेहतरीन सृजन।बहुत सुंदर।सादर
ReplyDeleteधन्यवाद सुजाता जी
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