लंबे संघर्ष और असंख्य बलिदान
अनगिनत यातना और घोर अपमान
मन पीड़ित और मूर्छित था प्राण
था वीभत्स रूप में देश की आन ।
सुंदर सपना आजाद हुआ
कर्म कुसुम भी आबाद हुआ
उमंग-तरंग बल तंत्र हुआ
देश ये प्यारा स्वतंत्र हुआ ।
स्वर्ण प्रभात का धूप मिला
अरमानों को नव रुप मिला
साज़ आवाज अंदाज मिला
कंधों से कंधों का साथ मिला ।
भारत माँ के चरणों में
हरदम शीश झुकाएँगे है
आजादी है सबको प्यारी
उत्सव खूब मनाएँगे ।
भारती दास ✍️
शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteआपको भी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
Swatantrata diwas ki shubhkamnayein!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
इस कविता में आज़ादी का पूरा संघर्ष और उसकी कीमत साफ झलकती है। सोचो, कितने बलिदान और अपमान सहकर हमारे पूर्वजों ने ये आज़ादी दिलाई। सबसे अच्छा हिस्सा लगा जहाँ कंधों से कंधे मिलाने की बात आई है, क्योंकि असली ताकत तो एकजुट होकर खड़े होने में है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ