जल गई दीपों की अवली
सज गई है द्वार और देहली
शक्ति का संचार कर गई
दीपमालिका मंगल कर गई
उर मधुर स्पर्श कर गई
निविड़ निशा में उमंग भर गई.
आभा धरा की दमक रही
सुख मोद से यूं चमक रही
हृदय-हृदय से पुलक रही
स्मित अधर पर खनक रही.
दिवस-श्रम का भार उठाये
दृग-दृग में अनुराग सजाये
दुर्गुण जलकर सद्गुण आयें
रमा-नारायण घर-घर आयें.
भारती दास ✍️
दीप-पर्व की अनंत शुभकामनाएं
क्या बात है प्रिय भारती जी।दीवाली की रात की बात हीं कुछ और है।सुन्दर रचना के लिए बधाई और आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी
ReplyDeleteदीवाली मंगलमय हो
सुन्दर रचना । दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ l
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपको भी ढेरों शुभकामनाएं
दीपावली का प्रकाश इसी तरह हर अंतर को प्रकाशित करे
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteआपको भी ढेरों शुभकामनाएं
सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपको भी ढेरों शुभकामनाएं
बहुत अच्छी लगी कविता । शुभ दीपावली ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपको भी ढेरों शुभकामनाएं
अति सुन्दर भाव। हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी
ReplyDeleteआपको भी ढेरों शुभकामनाएं