Monday, 28 February 2022

आनंद कंद कहलाते शंकर

 

    

आनंद कंद कहलाते शंकर

उर में चेतना देते भर-भर

रहते ऐसे क्यों मौन अनंत

जैसे निशा का हो ना अंत

हे महेश्वर हे सुखधाम

तीनों लोकों में फैला नाम

अपनी व्यथा भी कह नहीं पाते

पीड़ा का विष पीते जाते

किये हैं अबतक जितने पाप

मैंने अनुचित क्रिया कलाप

सारे दुनियां के दुःख-हर्ता

याचक बनकर हर कोई आता

अभिनन्दन की चाह न मुझको

निंदा की परवाह न मुझको

मिल जाता है मान धूल में

मिट जाता है शान भूल में

मेरा पुण्य जगे दुःख भागे

कबसे बांधी प्रेम की धागे

अब निराश यूं ही न करना

व्यर्थ न जाये मेरी साधना

नाथ सुनो न करूण पुकार

अंधकार से लो न उबार . 


भारती दास ✍️ 

       

22 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-03-2022) को चर्चा मंच        "शंकर! मन का मैल मिटाओ"    (चर्चा अंक 4357)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  3. सुंदर प्रार्थना

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  4. धन्यवाद अनीता जी

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  5. भोले नाथ सब की गुहार सुनते हैं ... किसी को अन्धकार में नहीं रहने देते ...
    सुन्दर रचना ...

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  6. बेहतरीन रचना।

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  7. धन्यवाद अनुराधा जी

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  8. बहुत सुंदर शिव उपासना।
    सुंदर सृजन।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी

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  9. बहुत ही सुन्दर प्रार्थना भोले शंकर की।
    वाह!!!

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    1. धन्यवाद सुधा जी

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  10. प्रार्थना रूपी रचना बहुत ही लाजवाब।
    नई पोस्ट धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा

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  11. बहुत सुंदर, सारगर्भित प्रार्थना भोलेनाथ की । बहुत बधाई आपको ।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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    1. धन्यवाद जेन्नी शबनम जी

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  13. Replies
    1. धन्यवाद मधुलिका जी

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