आनंद कंद कहलाते शंकर
उर में चेतना देते भर-भर
रहते ऐसे क्यों मौन अनंत
जैसे निशा का हो ना अंत
हे महेश्वर हे सुखधाम
तीनों लोकों में फैला नाम
अपनी व्यथा भी कह नहीं पाते
पीड़ा का विष पीते जाते
किये हैं अबतक जितने पाप
मैंने अनुचित क्रिया कलाप
सारे दुनियां के दुःख-हर्ता
याचक बनकर हर कोई आता
अभिनन्दन की चाह न मुझको
निंदा की परवाह न मुझको
मिल जाता है मान धूल में
मिट जाता है शान भूल में
मेरा पुण्य जगे दुःख भागे
कबसे बांधी प्रेम की धागे
अब निराश यूं ही न करना
व्यर्थ न जाये मेरी साधना
नाथ सुनो न करूण पुकार
अंधकार से लो न उबार .
भारती दास ✍️
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-03-2022) को चर्चा मंच "शंकर! मन का मैल मिटाओ" (चर्चा अंक 4357) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteसुंदर प्रार्थना
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteभोले नाथ सब की गुहार सुनते हैं ... किसी को अन्धकार में नहीं रहने देते ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
धन्यवाद सर
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर शिव उपासना।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रार्थना भोले शंकर की।
ReplyDeleteवाह!!!
धन्यवाद सुधा जी
Deleteप्रार्थना रूपी रचना बहुत ही लाजवाब।
ReplyDeleteनई पोस्ट धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा
धन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर, सारगर्भित प्रार्थना भोलेनाथ की । बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद जेन्नी शबनम जी
Deleteबहुत सुंदर,
ReplyDeleteधन्यवाद मधुलिका जी
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